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Showing posts from 2022

बहुजन व वंचित लोग - अपनी लाइन कैसे बड़ी की जाये?

बाबा साहेब जी की बुनियादी राजनैतिक शिक्षा किसी भी राजनेता के लिए उतनी ही जरुरी है जीतनी खाना पकने के लिए आग| बाबा साहेब जी की बुनियादी राजननीतिक शिक्षा पर हम बाद में बातें करेंगे| आज हम विश्लेष करने की कोशिश करेंगे की उसकी साड़ी मेरी साड़ी से सफ़ेद कैसे या आगे वाली की लाइन छोटी करने के लिए क्या मेरी लाइन को सिर्फ बड़ी होना ही काफी है| हम लोग विचारधारा की लड़ाई लड़ते है, जहा हम अपनी ही एक विचारधारा को जनम दे कर उसके पीछे हो लेते है शायद जो हमारे लिए फायदे मंद हो और फिर राजनीती को भी उसी विचारधारा के माध्यम से देखने की कोशिश करते है| बाबा साहेब जी के अनुयायी होने के नाते हम बाबा साहेब जी के नाम के पीछे, उनकी मूर्ति के पीछे और उनकी नाम की इमारतों के पीछे बड़ी आसानी से हो लेते है| इन दोनों बातों को उदहारण से देखते की कोशिश करते है| हम गौतम बुद्धा को मानते है और शायद उन्ही के विचारधारा को अनुशरण करने की कोशिश करते है| गौतम बुद्धा ने मूर्ति पूजन मना किया था, फिर भी हम उन्ही की मूर्ति लगते है और पूजा करते है, हर कार्यक्रम के देखा जा सकता है और शायद बुद्धिस्टों के घरों पर भी| हम ने अपनी ही ए...

EVM न हूवा भूत हो गया

आज भी मुझे लगता है, जब बीजेपी रिकॉर्ड तोड़ गुजरात में चुनाव जीतती है, सारे विपक्ष लग  जाते है अपनी हार का ठीकरा EVM पर फोड़ने| पार्टियों में हिम्मत नहीं रही की अपनी हार का सही आकलन जनता के सामने रख सके| कांग्रेस, समाजवादी, बसपा और कई समय समय पर EVM  को ढाल बना ही लेते है|  अपने वामन मेश्राम जी ने तो इसे राष्ट्रीय मुद्दा बना रखा है| एक तो अपने अपने आपको साइबर एक्सपर्ट कहता नहीं थकता था और सीटों की वोटिगं क्लेम  करता था| लंदन और अमेरिका जाने कहा कहा से वीडियो आते थे उसके और सईद शुजा अपने आपको बोलता था| बीजेपी भी इससे अछूती नहीं रही जब वो विपक्ष में थी और आडवाणी जी ने बैलट पेपर से वोटिंग करने की मांग करी थी| आम आदमी पार्टी ने तो लाइव EVM हैकिंग सेशन करवाया था| २०१७ में जब बीजेपी उत्तर प्रदेश का विधान स२०२२ में जब फिर से बीजेपी जीती तो इस बार समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश जी ने मोर्चा खोल दिया जब की उनके पार्टी को १२५ सीटें मिली थी, लगभग तीन गुना २०१७ के मुकाबले| समय समय पर EVM की छेड़छाड़ की खबरे आती रहती है और हारने वाला EVM के गलत उपयोग को लेकर जीतने वाले को घेरता रहता...

क्या सही में दूसरी दलित पार्टिया बी.एस.पी का वोट काट कर उसे नुकसान पंहुचा रही है - 2?

 जैसे की मैं पहले बोल चूका हु की अगर समाजवादी पार्टी को छोड़ दिया जाये तो दूसरी बहुजन व वंचितों के पार्टी से बसपा के चुनाव जीत और हार में कुछ फरक नहीं पड़ता दीखता| मैं स्ट्रीम मीडिया आपको सिर्फ यही बताएगी की बसपा निचे गिर रही है| बसपा अभी भी कई सीटें निकल सकती है, संसदीय चुनाव २०१९ को देखे तो १० सीट पर जीतते हुए २७ सीटों पर दूसरे स्थान पर रही है. एक सीट पर तो करीब २०० वोटों से हारी है| यह सब बसपा के स्थानीय निष्क्रियता के कारन ही जान पड़ता है और निष्क्रियता विधानसभा चुनाव २०२२ आते आते इतनी बढ़ गयी थी की १ ही सीट जीत पायी| बसपा की सर्वजन हिताये सर्वजन सुखाये वाली सोशल इंजीनियरिंग चल नहीं पायी| बसपा ने अपना सोशल मीडिया नहीं खड़ा किया, अपने लोगों को मीडिया में प्रोत्साहन नहीं दिया (इस बार प्रयास किया था और वो चुनाव तक ही सिमित दिखा), जान संपर्क नहीं दीखता, कुछ गिने चुने कार्यक्रम के अलावा कोई कार्यक्रम नहीं सुरु किये जिससे लोगों तक बाद पहुचायी जा सके| लोकल लोग कांशीराम जी का और मायावती जी का जन्मदिन बनाने के लिए ज्यादा उत्साहित दिखते है| सोशल मीडिया और मीडिया एक ऐसा माधयम है जो लोगों से सी...

क्या सही में दूसरी दलित पार्टिया बी.एस.पी का वोट काट कर उसे नुकसान पंहुचा रही है?

 कई दिनों से इस चिंता में परेशांन था की आखिर बहुजन और वंचितों की राजनीती कहा जा रही है| कई महान लोगों के द्वारा किया परिश्रम व बलिदान क्या अब ख़तम हो जायेगा| अभी फ़िलहाल के चुनाव नतीजों ने तो और भी परेशांन कर दिया| मुझे साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था या यह कहूंगा की समझ आने लगा की २०२४ में बहुजनो की राजनीती कहा जाएगी| आंदलनों, भारत बंद, कुछ जन सभाये और छोटे मोटे इधर उधर घेराव से कुछ नहीं हो रहा है| बहुजनो और वंचितों का प्रतिनिधित्व नहीं पहुंच पा रहा है सत्ता के गलियारे तक| हमारे कई नेता लोग कभी समाजवादी पार्टी, कभी एन. सी. पी, कभी कांग्रेस के साथ और तो कभी बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ते दिखे है पर नतीजा क्या? समाज को क्या मिला या -बाबा साहेब के रस्ते पर चले वे सब|      मुझे बी.एस.पी के अलावा अभी भी कोई पार्टी नहीं दिखती जो बहुजनो और वंचितों की आवाज़ बन सके| कोई और पार्टी न विधानसभा और ना ही कोई संसद पहुंचने में कामयाब रही है| मैं पिछले कुछ चुनाव के नतीजे देख रहा था और पाया की दूसरी अन्य दलित पार्टी के वजह से बी.एस.पी को कितना नुकसान हुवा और क्या यही एक कारन वोट डिवीज़न ही है ज...

बहुजनों का घटता मजबूत राजनैतिक प्रतिनिधित्व

 बाबा साहेब जी खुद एक पूरी पूरी पाठशाला है और कही और जाने की जरुरत नहीं है हम बहुजन लोगों को ये समझने के लिए की आधुनिक भारत को एक सही और मजबूत लोकतांत्रिक देश बनाये रखने के लिए एक विपक्ष का होना और सभी का प्रतिनिधित्व बहुत जरुरी है| बाबा साहेब जी को तो समय नहीं मिला एक सक्षम और मजबूत राजनैतिक विपक्ष देने का आर. पी. आई. के रूप में उन्होंने सोच बनायीं थी पर वे खुद पूरी नहीं कर सके| उनके कदमों पर चल कर अगर सही में राजनैतिक सक्षम और मजबूत बहुजनों का विपक्ष देने की कोशिश की है तो वो है कांशीराम जी| बाबा साहेब जी ने कहा था की राजनीती एक ऐसी सत्ता की चाबी है जिससे आप हर मुश्किल ताला खोल सकते हो, वो हम लोगों को सत्ता पर बैठा देखना चाहते थे| और कांशीराम जी ने काफी हद तक हम बहुजनों को वो ताकत दे दी थी| अगर अब उत्तर भारत और मध्य भारत की बात करू तो कोई भी ऐसा नेता नहीं दीखता जो बाबा साहेब का सपने के आस पास भी हो| बाबा साहेब ने हमें सत्ता की चाबी थामने को कहा और हमारे कई नेता दूसरों को सत्ता हासिल करने में सहयोग देने की होड़ में लगे है| खुद के दम पर एक सांसद और एक विधायक नहीं दे पाते समाज को और ...

दिल्ली २०२२ MCD चुनाव परिणाम - कहा है बहुजनो का प्रतिनिधित्व

 लीजिये एक और चुनाव निकल गया, बात फिर कांग्रेस, बीजेपी, आप की ही हो रही है| मैं बात टीवी और अखबारों की नहीं कर रहा हु मैं बात कर रहा हु जितने की (https://economictimes.indiatimes.com/news/elections/delhi-mcd-election-2022-results-news-bjp-congress-aap-live-updates-7-december-2022/liveblog/96042384.cms)| कांग्रेस ने इतनी सीटें जीती, आप ने इतनी और बीजेपी ने इतनी| ऐसा नहीं की इन पार्टियों से बहुजनो को जीत नहीं मिलती| आरक्षित सीटों पर जरूर मिलती है| पर क्या सही मायने में ऐसे लोग बहुजनो का प्रतिनित्व कर पाते है| इसके लिए थोडा इतिहास देखते है और बाबा साहेब जी से अच्छा कोई नहीं होगा सीख देने वाला| पहले तो बाबा साहेब जी जैसे ज्ञाता ने खुद प्रयास किया को कांग्रेस के साथ मिल कर काम किया जाये पर समय रहते उन्हें पता चल गया और उन्होंने आर.पी.आई पार्टी बनाने की सोची | आखिर क्यों? बाबा साहेब जी भी कांग्रेस की सीट पर चुनाव लड़ सकते थे और संसद बड़े आराम से जा सकते थे| पर वे अगल उनके विरोध में खड़े हुए| बाबा साहेब जी जानते थे की कांग्रेस के साथ जा कर वे वो कल्ल्याणकारी काम सब नहीं पाएंगे जो उन्होंने बह...

बाबा साहेब जी की याद में - ६ दिसंबर विशेष - अंतिम ५ दिन

१ दिसंबर १९५६,  प्रातः ७:३० बजे थोड़ा जल्दी उठ कर बाबा साहेब ने  मथुरा रोड पर लगी प्रदर्शनी देखने जाने की इच्छा प्रकट कर सभी को आश्चर्य कर दिया, थोड़े तरोताजा और प्रफुल्लित लग रहे थी| इन दिनों बाबा साहेब अपनी किताब "बुद्धा एंड कार्ल मार्क" को पूरा करने में ही लगे रहते थे और बहार बहुत कम ही निकलते थे| करीब १:३० बजे दोपहर को प्रदर्शनी के गेट पर पहुंचे| प्रदर्शनी के एक अधिकारी ने उनकी अगवाही की और प्रदर्शनी दिखने ले गया| उनको लोगों ने चारो और से घेर लिया था| बाबा साहेब प्रदर्शनी देख कर बहुत प्रशन्न और आश्चय हुए, भगवान बुद्धा की  अलग अलग मुद्राओं में मुर्तिया कई देशों से प्रदर्शित थी| धीरे धीरे प्रदर्शनी देखने के बाद जब बाबा साहेब वापस गेट पर आये, पीछे मुड़े, एक कोने से दूसरे कोने तक नज़र दौड़ाई और बोले - "मेरे बुद्ध महान थे, मेरे बुद्ध महान थे" | सोहनलाल शास्त्री पहले से भी गेट पर मौजूद थे, बाबा साहेब के पास आये और बड़ी ही  जिज्ञासापूर्ण पूछा, इतने विभिन्न विभिन्न मुद्राओं और चेहरे में भगवान बुद्ध को दर्शाया गया है, भगवान बुद्धा की असली शक्ल कैसी होगी बड़ा भ्रम है| बाबा साहेब...

किस राह जाती हुयी बहुजन व वंचितों की राजनीति

मैं इतना ही कहूंगा कि आज की स्थिति बहुजनों और दलितों के लिए बिल्कुल भी अनुकूल नहीं है। न तो कोई सामाजिक संगठन और न ही कोई राजनीतिक संगठन बहुजनों और वंचितों की आवाज मजबूती से उठाता नजर आ रहा है। लोग पहले से ज्यादा जागरूक हुए हैं, लोग पहले से ज्यादा सजग हुए हैं, वे समाज के लिए अपनी भूमिका निभाने को तैयार हैं और कोई हिस्सों में साझेदारी भी बढ़ी है| कांशीराम जी ने कहा था की हमे इतनी ताकत बनानी होगी की अगर हम सरकार न भी बना सके पर हमारे बिना हमारे सरकार चलनी नहीं चाहिए | आज आज़ादी के ७५ वर्ष में हम है पर हमारे लोग और हमारे संगठन आज भी वैसी ताकत नहीं बना पाए| आज भी हम सत्ता के गलियारों में झाकते है की कोई हमे सत्ता की भागीदारी हमारे झोली में डाल दे ठीक वैसे ही जैसे कोई मंदिर के सीढ़ियों पर इंतज़ार करता है| सामाजिक संगठनो की तो और हालत और भी गंभीर है इसीलिए उनकी बात नहीं करूँगा| राजनैतिक संगठनों में भी कुछ ज्यादा बदलाव नज़र नहीं आता| वामन मेश्राम की बात करू तो शरद पवार (https://www.youtube.com/watch?v=qVIIqR_O-BA) को खुले आम सपोर्ट करने की बात करते है| वही प्रकाश आंबेडकर कभी एकनाथ शिंदे (https://...

BSP अभी भी कम नहीं है

2017 और 2022 में जब मैं अपने आस-पास UP के क्षेत्र के लोगों से चुनावी सर्वे और जमीनी हकीकत जानने के लिए बात करता था और मैं जानता था कि जिन लोगों को थोड़ी सी भी राजनीतिक समझ होती है, वे बसपा के संगठन ढांचे की तारीफ करते हैं | 2017 से पहले जाति समावेशन और धनबल के संयोजन ने बसपा को कई जीत दिलाई। मायावती जी के कई सामाजिक कार्यों के बावजूद, विपक्षी दलों ने उनके कुछ कार्यों की जमकर निंदा की, जैसे कि अपनी खुद की मूर्ति लगवाना। यह बात विपक्षियों को पता चल गई थी और उन्होंने इसी के जरिए अपने उम्मीदवार चुनने शुरू कर दिए थे। उम्मीदवार का चयन करने के लिए धन शक्ति अभी भी एक महत्वपूर्ण कारक है। नीचे दिए गए ग्राफ से स्पष्ट है कि भाजपा उम्मीदवार की औसत संपत्ति 61 लाख से बढ़कर 750 लाख हो गई और बसपा के लिए यह 86 लाख से बढ़कर 480 लाख हो गई। मेरे हिसाब से BSP के लिए अभी भी उम्मीद है की बहुत मजबूती से वापसी कर सकती है| 2017 में बीजेपी के जीते 30 विधायक बसपा के थे. बसपा छोड़ने वालों की संख्या हमेशा किसी भी अन्य पार्टी को छोड़ने वालों की संख्या से अधिक होती है। आप देखेंगे कि बसपा छोड़ने वालों का जीत का अनु...

वोट का रास्ता बुद्धा और बाबा साहेब से होते हुए जाता है

 हम बहुजनो और वंचितों के लिए बुद्धा और बाबा साहेब किसी देवता से कम नहीं है और हम जाने अंजाने उनके लिए अंध भक्त बन जाते है| इसी का फायदा ले कर पहले भी और अभी भी कई लोगों के लिए यह के राजनैतिक हथकंडा है और वो जानते है की हमारे वोटों का रास्ता बुद्धा और बाबा साहेब से होते हुए उनके झोली में जा कर गिर जाता है| मुझे राजेंद्र पल गौतम भी इसके उपवाद नहीं लगते | मैंने पहले भी अपनी मंशा जाहिर की थी की क्या राजेंद्र पल गौतम दूसरे उदितराज तो नहीं? अब जब AAP पार्टी के प्रमुख प्रचारक के तौर पर उनका नाम आता है तो बहुत कुछ समझने वाली बात है| क्या यह सोची समझी चाल है, क्या केजरीवाल को पहले से अंदेशा हो चला था की अब बहुजन वोट उससे छिटकते जो रहे है, क्या राजेंद्र पाल  गौतम को बहुजन व वंचितों को आकर्षित करने के लिए हीरो बनाया गया, इससे एक और बात समझने वाली है AAP नहीं तो कौन किस के लिए राजेंद्र पल गौतम को हीरो बनाया गया BJP या BSP? पहले कांग्रेस, फिर NCP, फिर BJP और अब AAP हमारे लोगों को हीरो बना कर बहुजन व वंचितों के वोटों को लेते और ले रहे है| क्या हम धार्मिक और राजनैतिक परिपक्वता को दिखा सकते ह...

पिछड़े व वंचितों के लिए कुछ फरक केजरीवाल और बाकि सरकारों में

 क्या आंबेडकर जी का सपना सिर्फ जय भीम बोलने से या फिर उनके नाम पर गाने और कार्यक्रम करने से पूरा हो जायेगा| आज के बहुजन किसी के इतने से छोटे काम से ही प्रभावित हो जाते है और उसके भक्ति में लीन हो जाते है| आंबेडकर जी ने सपना देखा था एक व्यक्ति, समाज और देश में समता मूल लागू हो सके| जिसमे हर आदमी समान भावना से देखा जाये, सामान मौका मिले, हर क्षेत्र में| चाहे राज्य सभा में भेजने  की बात हो या राजेंद्र पाल गौतम द्वारा ली गयी २२ प्रतिज्ञा की प्रतिक्रिया| क्या आपको भेदभाव दिखता  है? मुझे याद है एक बार एक रेल दुर्घटना ने हताहत होने वाले गरीब लोग थे और रामबिलास पासवान ने तुरंत उनके लिए मुवावजे की रकम लागु कर दी थी पर जब से वे बी. जे. पी. को समर्थन कर मिनिस्टर बने मैंने कभी कोई मुवावजे का ऐलान नहीं सुना| बात मुवावजे की नहीं बल्कि खुल कर समाज के लिए काम करने की है| उदितराज बी. जे. पी. को समर्थन कर रिजर्वेशन इन प्राइवेट सेक्टर पर कितना बोल पाए| बी. जे. पी. और कांग्रेस भी आंबेडकर जी के नाम के आवला कुछ खास करती नहीं दिखती और हर बार इस तबके को एक वोट बैंक के तरह उपयोग कर छोड़ देती है| म...

बहुजन और वंचितों की राजनैतिक की दशा

 आज बहुजन व वंचितों की राजनीती कहा जा रही है क्या अब कोई सिर्फ एक नेता बहुजनों व वंचितों की अगवाई कर पायेगा| बाबा साहेब आंबेडकर जी के समय स्वाभिमान, गरिमा और अपने पर हुए अत्याचार की बातें करने वालों के पीछे बहुजन व वंचित जनता थी| और बाबा साहेब आंबेडकर जी के बाद भी जनता की लगभग यही मांग थी| बाबा साहेब आंबेडकर जी ने सामाजिक (समता सैनिक दाल), धार्मिक (भारतीय बौद्ध महासंघ) और राजनैतिक (रिपब्लिक पार्टी ऑफ़ इंडिया) ढांचे जनता को दिये थे पर उनके जाने के बाद तीनो ढांचे या तो बुरी तरह बिखर गए या फिर कांग्रेस के पीछ लग्गू बन गए| जनता का धीरे धीरे इन संस्थाओं पर से विश्वास उठता जा रहा था और लोग १९७० के दशक में दलित पैंथर को एक आशा की नज़र से देखने लगे थे| दलित पैंथर भी महाराष्ट्र से आगे नहीं जा पायी| दूसरी और बाबा साहेब आंबेडकर जी के सविंधान की वजह से एक शिक्षित पीढ़ी बनाने लगी जिसमे ना केवल सामाजिक, राजनैतिक समझ व जागरूकता थी बल्कि व्यापारिक व  आर्थिक समझ व जागरूकता भी थी| सरकारी कामो की जानकारी व वैश्विक पहुंच भी बनाने लगी थी| १९८० के बाद यही बहुजन और वंचित समाज समता सैनिक दाल, भारतीय बौद...

राजेंद्र गौतम कही दूसरे उदितराज तो नहीं ?

 भारत में राजनीति की बिसात धर्म की आड़ लेकर या धर्म की सीढ़ी बनाकर शुरू की जाती है। हर दल और लगभग हर नेता इससे अछूता नहीं है। और यह सूत्र सफल भी होता है। बहुत सी बातें धर्म की आड़ में भी छिपी हैं। जिस देश में लोग देश के संवैधानिक नाम से ज्यादा भारत का इस्तेमाल करते हैं, वहां ज्यादा राजनीतिक परिपक्वता की उम्मीद करना भी सही नहीं है। आदर्श रूप से हमें धर्म और राजनीति को अलग-अलग रखना चाहिए और बिना धर्म के प्रभाव में आकर राजनैतिक में उसे समर्थन करना चाहिए जो सही में देश और सर्व समाज का भला कर सके| बहुजन वंचित समाज भी इससे अछूता  नहीं है| उनके लिए आंबेडकर एक धर्म से कम नहीं है| ये समाज आंबेडकर जी के द्वारा बताये रास्तों की बातें करने वालों के पीछे अंध भक्त की तरह चल पड़ते है| उन्हें यह पता ही नहीं चलता की अंध भक्त की तरह चलते चलते वे कब राजनैतिक मोहरा बन गए और आंबेडकर जी के रास्तो को छोड़ बस एक नारा बन गए "जय भीम"| बहुजन व वंचित समाज के लोगों को आंबेडकर धर्म के रास्तों पर चलते चलते यह भी समझाना होगा की उनके आंबेडकर धर्म का कोई राजनैतिक फायदा नहीं ले ले जो की पिछले कई सालों से होता आ ...

22 vows of Babasaheb - Path to Buddha

 Before writing anything about 22 vows let us look at some aspects of Babasaheb ji's life so that we can see and understand the perspective of 22 vows. This is completely my personal opinion. On 13 October 1935, Babasaheb ji had said in the Yevala conference that the time has come to take a final decision, we should abandon Hinduism and adopt some other religion which should have equal status and proper conduct. It was further said that it was unfortunate that I was born in Hindu religion, on which I had no right, but I take an oath that I will not die in Hindu religion. Baba Saheb ji said this because before that his life was spent in the reform lane in Hindu religion, but there was not a single difference in Hindu religion. He told Nanakchand Rattu ji that Hindu people are not bad but their religion is based on high and low, which does not allow their conduct to get out of it. On October 14, 1956, on the day of Dussehra, Babasaheb ji converted to Buddhism in Nagpur. Today we know...

बाबा साहेब जी की २२ प्रतिज्ञाएँ - चलो बुद्ध की ओर

 22 प्रतिज्ञाएँ के बारे में कुछ भी लिखने से पहले आइए बाबासाहेब जी के जीवन के कुछ पहलुओं को देखें ताकि हम 22 प्रतिज्ञाओं के दृष्टिकोण को देख व समझ सके। यह पूर्ण रूप से मेरे व्यक्तिगत मत है|  १३ ओक्टम्बर १९३५ को येवला सम्मलेन में बाबा साहेब जी ने कहा था की अंतिम निर्णय लेने का समय आ गया है, हम हिन्दू धर्म का परित्याग कर कोई और धर्म ग्रहण करे जिसमे समानता का दर्जा मिले और उचित आचरण हो| आगे कहा की  दुर्भाग्य था की हिन्दू धर्म में जन्म हुआ जिस पर मेरा कोई अधिकार नहीं था पर मैं शपथ लेता हू की मैं हिन्दू धर्म में मरूंगा नहीं| बाबा साहब जी ने ऐसा इसीलिए कहा क्योकि इससे पहले उनका जीवन हिन्दू धर्म में सुधर लेन में ही बिता पर हिन्दू धर्म में रत्ती भर का फरक नहीं आया| उन्होंने नानकचंद रत्तू जी से कहा था की हिन्दू लोग बुरे नहीं है पर उनका धर्म ही उच नीच पर आधारित है जोकि उनके आचरण को उससे बहार निकलने नहीं देता| १४ ओक्टम्बर १९५६ दशहरे के दिन नागपुर में बाबा साहेब जी ने बुद्ध धर्म अंगीकार कर लिया| उस जगह को हम आज दीक्षाभूमि के नाम से जानते है| बाबा साहेब जी को २१ साल लग गए एक ऐसा ध...

Dalit Movement and Ambedkar's Propaganda in India

Dalit Movement and Ambedkar's Propaganda in India भारत में दलित आंदोलन और आंबेडकर का प्रचार प्रसार After Babasaheb, a decrease in the Dalit movement can be seen, the Dalit leaders either sat silently or were confined to their area. This is true for both political and social movements. Yes, you can see some corrective steps towards policies and policy reforms. Policies in the interest of the people can be effectively and widely propagated only when you have strong social and political support. I attribute this to those leaders who not only considered Babasaheb as their fiefdom and did not go out of the limited area for some of their benefit. I am from Maharashtra and had gone to Assam in 1993 to visit Darjeeling region. I was surprised to see that no one knew Babasaheb Ambedkar ji with whom I spoke. Today the situation is better but still many people do not know Babasaheb. After Kanshi Ram, the Dalit movement gained a lot of momentum. It seems that he organized and developed the mov...

Kanshi Ram is not just a name but a political way we need today

छत्रपति शाहूजी महाराज ने 21 मार्च, 1920 को मानगाँव सम्मेलन में डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को भारत में उत्पीड़ित वर्गों का सच्चा नेता घोषित किया। और 2001 में, कांशी रामजी ने मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। आज 9 अक्टूबर को कांशीराम जी के महापरिनिर्वाण के दिन, मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि आज के समय में हमें छत्रपति शाहूजी महाराज और कांशी रामजी जैसे लोगों की जरूरत है जिन्होंने कई समाज सुधार कार्य किए हैं और बाबासाहेब और मायावती। जैसे नेताओं की पहचान करना और उन्हें रास्ता या मंच दिखाना। आज हम और हमारे वंचित बहुजन समाज में लोग अनेक पुस्तकें पढ़कर विद्वान बन गए हैं। शायद ऐसे विद्वान, ऐसे विचारक जिनका कोई समान नहीं है। लेकिन अगर मैं राजनीतिक सफलता को देखता हूं, तो मुझे बातचीत और भाषणों के अलावा कुछ नहीं दिखता। हर कोई अपना झंडा लिए अपने-अपने रास्ते पर अकेला खड़ा दिखाई दे रहा है। आज इतने सारे झंडे देखकर वंचित बहुजन समाज के लोग व्याकुल, विचलित और विभाजित हैं। उसे फिर से कोई कांशीराम चाहिए जो उन्हें उनके नेता से मिला सके| और यह आज के परिवेश में और भी मायने रखता है क्योकि है हर कोई बा...

What can happen with Vaman Meshram's 6 October move?

  On 8 April 1929, Bhagat Singh ji threw a bomb in the Central Legislative Assembly, Delhi. They knew that the police would be caught and jailed, but those who wanted to give a message to the people of India, that message reached the people. I see Meshram ji's action on 6th October in the same way, he didn't throw the bomb but the blast didn't work for him either. When he reached me, every Bahujan channel gave him coverage and this news reached many other WhatsApp groups. The objective was very clear, to expose the puppet governments that did not allow the programs of him and many Bahujan leaders like him. Where is the puppet control coming from? Meshram ji knew that after taking this step, he and his companions could be imprisoned, but the purpose of his bold move would be fulfilled and perhaps it would also be accomplished. Many people are asking who is Vaman Meshram, their discussions continued in the WhatsApp group. Second, Meshram ji once again put this thing in front ...

My Identify – Finding A Political Base

  My Identify – Finding A Political Base So called DALIT, Ambedkarite, Buddhist, Bahujan or Mulnivasi. I always find myself struggling with these words and struggling to find my identity. In India I am called as Dalit, most of the time which I don’t want to be. Now you are surprised that why I am struggling to find my identity. Yes, really is normal but it is not normal for me. To understand this, I have to tell you, my story. When I was born my family already moved to one of the big cities of India. My grandfather already embraced Buddha with Dr Baba Saheb Ambedkar. What is that mean. That mean during Baba Saheb Ambedkar’s revolution my grandfather left the Hindu religion and Dalit caste. Now ideally our family is Buddhist family. India constitution gave some additional benefits to so called Dalits and registered them as SC (scheduled caste) in all government correspondence. SC people who were converted to Buddhist were wanted to enjoy the additional constitutional benefits. This ...