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पिछड़े व वंचितों के लिए कुछ फरक केजरीवाल और बाकि सरकारों में

 क्या आंबेडकर जी का सपना सिर्फ जय भीम बोलने से या फिर उनके नाम पर गाने और कार्यक्रम करने से पूरा हो जायेगा| आज के बहुजन किसी के इतने से छोटे काम से ही प्रभावित हो जाते है और उसके भक्ति में लीन हो जाते है| आंबेडकर जी ने सपना देखा था एक व्यक्ति, समाज और देश में समता मूल लागू हो सके| जिसमे हर आदमी समान भावना से देखा जाये, सामान मौका मिले, हर क्षेत्र में| चाहे राज्य सभा में भेजने  की बात हो या राजेंद्र पाल गौतम द्वारा ली गयी २२ प्रतिज्ञा की प्रतिक्रिया| क्या आपको भेदभाव दिखता  है? मुझे याद है एक बार एक रेल दुर्घटना ने हताहत होने वाले गरीब लोग थे और रामबिलास पासवान ने तुरंत उनके लिए मुवावजे की रकम लागु कर दी थी पर जब से वे बी. जे. पी. को समर्थन कर मिनिस्टर बने मैंने कभी कोई मुवावजे का ऐलान नहीं सुना| बात मुवावजे की नहीं बल्कि खुल कर समाज के लिए काम करने की है| उदितराज बी. जे. पी. को समर्थन कर रिजर्वेशन इन प्राइवेट सेक्टर पर कितना बोल पाए| बी. जे. पी. और कांग्रेस भी आंबेडकर जी के नाम के आवला कुछ खास करती नहीं दिखती और हर बार इस तबके को एक वोट बैंक के तरह उपयोग कर छोड़ देती है| मुझे एक वाक्या याद है जब भगत अमीनचंद आंबेडकर जी से मिलाने आये थे तो कहा था की बाबा साहेब, हम दलितों पर आप की मेहनत का जीवन भर फल मिलगे है और हम चखते रहेंगे| आप कांग्रेस नेताओ और उनके नीतियों की जीतनी आलोचना करते हो उतने ही हमे लाभ प्राप्त होता है| आप कुछ बयान जारी कर देते है वे हमारा और ख्याल और सुविधाएं देने लगते है| इसी भगत अमीनचंद ने एक सभा में नारे लगाए थे "मूर्खो के अन्नदाता, डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर अमर रहे, स्पष्ट करने पर बोले बाबा साहेब को खलनायक के रूप में प्रस्तुत करने पर उनको खूब धन मिलता है| बाबा साहेब के समाज के लोग अगर उनके खिलाफ बोलेंगे तो उनका ज्यादा नुकशान होगा| बाबा साहेब के कहा था की इनके जैसे लोग बेशर्म, दुष्ट और धोकेबाज नहीं होते तो हम बहुत जल्दी राजनैतिक उद्धार की लड़ाई जीत गए होते| आज भी यही देखने को मिलता है लोग बिना विवेक और जाने कांग्रेस, बी. जे. पी, आप और ऐसी कुछ पार्टियों को समर्थन दे देते है| और समय आने पर इन जैसे नेताओ को चाय की मक्खी की तरह निकल देते है| केजरीवाल भी इन बातों से अछूते  नहीं है| जोर जोर से जय भीम के नारे लगाने वाले, नेहरू स्टेडियम में आंबेडकर के ऊपर बहुत आलिशान कर्यक्रम करने वाले आकड़ों तो कुछ और कहते है| जनसँख्या के हिसाब से दिल्ली में बहुजनो की जनसँख्या १६% से १७% है| बहुजनो के लिए शेड्यूल्ड कास्ट स्पेशल कॉम्पोनेंट (scsp) जोकि आबादी के अनुपात में बजट में होना चाहिए व प्रावधान करती रही है. डॉ. अंबेडकर की बातें करने वाली दिल्ली सरकार अंबेडकर के समाज के विकास के मामले में काफी पिछड़ी दिखती है. पिछले पांच सालों में दिल्ली सरकार के बजट और खर्च दोनों में वृद्धि हुई है. साल 2017-18 से साल 2021-22 इन पांच सालों में दिल्ली सरकार के बजट में 43.75% की वृद्धि हुई, लेकिन बहुजनो के विकास के बजट, वर्ष 2017-18 में कुल बजट का 0.83% था, पिछले पांच सालों में घट कर दिल्ली के बजट का मात्र 0.68% ही रह गया| दिल्ली जब कोरोना से त्राहि-त्राहि कर रही थी, और लाखों बहुजन परिवार रोज़ी-रोटी, शिक्षा और स्वास्थ्य के गहन संकट से गुजर रहे थे, दिल्ली सरकार अनुसूचित जातियों के लिए आबंटित बजट का केवल 17.98% ही खर्च कर पाई| अगर " THE QUINT" रिपोर्ट की माने तो स्कूलों में EWS कोटे बहुजनो के विद्यार्थियों को दाखिले न मिलना, बहुजनो की छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए हॉस्टल, जाति प्रमाणपत्र जारी करने की जटिल प्रक्रिया, बहुजनो के विद्यार्थियों के लिए आवासीय विद्यालय, सरकारी सेवाओं की आउटसोर्सिंग, आया और चौकीदारों के लिए न्यूनतम मजदूरी, दिल्ली सरकार के ठेकों में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण, सरकारी कर्मचारियों की पोस्टिंग और प्रमोशन में भेदभाव की समाप्ति आदि शामिल है| 

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