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भाषा के साथ हमारी संस्कृति व इतिहास भी विलुप्ति पर

 

पिछले हफ़्ते की बात है जब मैं अपने पुश्तैनी गाँव गया था। बहुत सालों बाद अपनी दादी से मिला और उनके मुँह से कोशारी सुनना बहुत मज़ेदार था। हमारे दादा, दादी, पिताजी, चाचा और उस समय के बहुत से लोग कोशारी बोलते थे। अब मैं देख रहा हूँ या यूँ कहूँ कि अब मैं ध्यान दे रहा हूँ, आजकल के लोग कोशरी बोलना भूल गए हैं, मैं भी उसी श्रेणी में आता हूँ, मैं कोशरी नहीं बोलता, मुझे बुरा लगा। दिल्ली वापस आने के बाद, मैंने इंटरनेट पर खोजा कि भारत की कितनी भाषाएँ व बोलिया विलुप्त हो गई हैं| यह चिंताजनक है कि भारत में 197 भाषाएँ संकटग्रस्त हैं, जिनमें से 81 असुरक्षित हैं, 63 संकटग्रस्त हैं, 6 गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं, 42 गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं और 6 पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं। और बोलियों का तो हिसाब भी कही ठीक से नहीं मिलता|  (संदर्भ: https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/extinct-endangered-vulnerable-tale-of-indias-linguistic-heritage/historic-destruction/slideshow/70601865.cms और https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_endangered_languages_in_India)

दादी जी से आगे बातें करते करते पता चला की मेरे पैतृक गांव से कितने ही प्रतिभावान लोग बिना पहचान, बिना नाम के ऐसे ही चले गए, नाख़ून से स्केचिंग बनाने वाले मामा जी, बॉडीबिल्डर सभी उन्हें सांडो के नाम से जानते थे, लाठी तलवार और कब्बडी खेलने वाले| 

बहुजन आंदलोनो में सक्रिय भाग लिया, आज़ादी के बाद के सांप्रदायिक दंगों में शांतिदूत बन कर नागपुर के गली गली में घूमे, बाबासाहेब आंबेडकर जी के चलाये आंदोलनों में अग्रणी भूमिकाये थी, समता सैनिक दल के कितने बड़े पैमाने पर प्रचार प्रसार किया। आज कल के विधर्भ के लोगों को कौन येह सब बतायेगा जब बताने वाला कोशरी भाषा में बोलेगा और सुनाने वाला हिंदी समझेगा|

यह एक छोटा सा उदाहरण है जो बोली पर है, हमारी भाषा और प्राकृतिक संस्कृति पर इससे भी ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। पाली का उदहारण जो सर्वव्यापी है, कितना ज्ञान, कितना इतिहास छुपा हुवा है| मैं इस लेख को नागपुर तक सीमित नहीं रखना चाहता, इसीलिए सामान्य बातों का उल्लेख कर समझाना चाहता हु| 

भारत, अपनी भाषाई विविधता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां कई भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं। लेकिन वर्तमान समय में, भारतीय भाषाओं व बोलिया लुप्त होने का संकट मंडरा रहा है। जैस की पहले बता चूका हु कई भाषाएं अब विलुप्त हो चुकी हैं और कई लुप्त होने के कगार पर हैं। कई लोग भारतीय भाषाओं के विलुप्त होने के पीछे यह सब  कारण दे सकते है जैसे वैश्वीकरण, शहरीकरण, और आधुनिक शिक्षा प्रणाली, जो अंग्रेजी जैसी वैश्विक भाषाओं को प्राथमिकता देती है। 

इसके अतिरिक्त, हमे यह भी देखना चाहिए की क्या सरकार और समाज के विभिन्न स्तरों पर भारतीय भाषाओं को पर्याप्त प्रोत्साहन मिल रहा है| नतीजतन, नई पीढ़ी अपनी मातृभाषाओं से दूर होती जा रही है।

मैं एक बड़ी कारन हिंदी के प्रसार को भी मानता हु। हालांकि हिंदी भारत में सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा है, लेकिन इसका अत्यधिक प्रचार-प्रसार कई क्षेत्रीय भाषाओं के लिए चुनौती बन गया है। हिंदी को बढ़ावा देने के प्रयासों के कारण कई छोटे भाषाई समुदाय यह महसूस करते हैं कि उनकी भाषाएं हाशिए पर धकेली जा रही हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर-पूर्व और दक्षिण भारत के राज्यों में लोग अकसर शिकायत करते हैं कि हिंदी के बढ़ते प्रभाव के कारण उनकी भाषाएं और सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ रही हैं।

इस भाषाई असंतुलन का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि भारत की सांस्कृतिक विविधता कम हो रही है। भाषाएं केवल संवाद का माध्यम नहीं हैं; वे हमारी परंपराओं, रीति-रिवाजों, और ज्ञान का स्रोत भी हैं। जब कोई भाषा विलुप्त होती है, तो उसके साथ एक पूरा सांस्कृतिक इतिहास भी समाप्त हो जाता है। 

मौजूदा भाषाओं  के साथ मैं पाली जैसे भाषाओ के उत्थान पर भी ध्यान देने की जरुरत है जहा पर भारत का पूरा इतिहास और संस्कृति छुपी हुयी है| 

हिंदी को बढ़ावा देने और अन्य भाषाओं को संरक्षित करने के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। सरकार और समाज को चाहिए कि वे सभी भाषाओं को समान महत्व दें। क्षेत्रीय भाषाओं को स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाने के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। इसके अलावा, उन समुदायों को सशक्त करना होगा जो अपनी भाषाओं को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

यह केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वे अपनी मातृभाषा को जीवित रखें। यदि हम समय रहते कदम नहीं उठाते, तो हमारी भाषाई धरोहर का बड़ा हिस्सा हमेशा के लिए खो सकता है।

भाषाओं की विविधता भारत की आत्मा है। इसे संरक्षित रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी जड़ों और संस्कृति से जुड़ी रह सकें। 

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