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बी.एस.पी और शिरोमणि अकाली दाल गठबंधन मेरी नज़र से

बहुजन समाज पार्टी ( बी.एस.पी) और शिरोमणि अकाली दाल (एस.ए.डी) गठबंधन आज की ही न्यूज़ है| पहली बार दोनों साथ नहीं आये है बल्कि कांशीरामजी के समय भी दोनों पार्टिया साथ आयी थी| १९१५ में बी.एस.पी ने एस.ए.डी को सपोर्ट किया था, १९९६ के लोकसभा चुनाव भी साथ में लड़े थे जिसमे कांशीराम जी होशियारपुर से जीते थे| इसके कुछ ही महीनो बाद एस.ए.डी ने बी.एस.पी से नाता तोड़ बीजेपी से नाता जोड़ लिया| १९९७ में एस.ए.डी ने बीजेपी के साथ मिल कर सरकार भी बनायीं| करीब २५ साल बाद फिर दोनों पार्टिया साथ में आयी| जून-२०२२ में दोनों ने मिल कर विधानसभा का चुनाव लड़ा| आज मायावती जी घोषणा करती हैं कि यह गठबंधन २०२४  लोकसभा भी साथ में चुनाव लड़ेगा| देखने वाली बात है की इस बार मायावती जी खुद सुखबीर सिंह बदल जी के घर गयी थीl जून-२०२३ में सतीश चंद्र मिश्रा जी दिखाई दिए थे| क्या मायावती जी ने इस बार खुद २०२४ की कमान संभाली है? 


अगर इतिहास के कुछ पन्ने पलटाये तो इस गठबंध के पास बहुत कुछ कर दिखने का बशर्ते यह गठबंधन सिर्फ चिनावी घोषणा बन कर न रह जाये| पंजाब में दलित करीब ३१% और पिछड़े भी करीब ३१% माने जाते है जोकि काफी बड़ी हिस्सा कह सकते है| इस गठबंधन को दलित-पिछड़ा-किसान एकता के रूप में भी देख सकते है| अबकी बार आम आदमी पार्टी ने सेंघ लगा राखी है| 

दोनों पार्टियों को दलित, पिछडो और किसानो के मुद्दे पुर जोर से उठाने होने, जनता के पास जाना होगा और विश्वाश दिलाना होगा की वो उनकी हो पार्टी है| मेरे हिसाब से जैसे देश के दलितों और पिछड़े किसी एक पार्टी को सामूहिक रूप से वोट नहीं देते वैसे ही पंजाब में भी किसी एक पार्टी को सामूहिक रूप से वोट नहीं देते। दलित समुदाय कई जातियों में बंटा हुआ है, अब इन दोनों पार्टियों को देखना होगा की कैसे सब में तालमेल बिठाये और इनके हित आपस में न टकराते साथ में आ जाये| माना जाता है कि दलित-पिछड़ा वोट कांग्रेस, बी.एस.पी, एस.ए.डी और अब आम आदमी पार्टी को भी जाता हैं| 

पंजाब के दलित-पिछड़े लोग अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से देश के बाकी हिस्सों के दलित-पिछड़ों से अलग हैं। बहुत से लोगतो विदेशों में बसे हुए हैं| सिख धर्म में जातिवाद के अभाव के कारण सामाजिक स्थिति कम गंभीर प्रतीत होती है। इतिहास के कुछ कड़वे पल हैं जो लोगों के मन में अभी भी है जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में, हरमंदिर साहिब, या स्वर्ण मंदिर में दलितों के साथ भेदभाव किया गया था (रेफ. https://caravanmagazine.in/)| उनके लिए अलग से आने का समय तय किया गया था और उनके स्नान के लिए अलग जगह थी। कुछ दिन पहले बाबू मंगू राम जी की जयंती पर मैंने आदि धर्म आंदोलन और दलितों के लिए भूमि अधिग्रहण का जिक्र किया था। आपने आश्रम वेब सीरीज़ देखी या सुनी जरूर होगी, जो कहते है बाबा गुरमीत राम रहीम जी के डेरा पर आधारित है| डेरे पूरे पंजाब में सामाजिक-धार्मिक समूह हैं, जिनमें से कई समावेशिता का वादा करते हैं। और उत्पीड़ित और उपेक्षित लोग इन डेरों का अनुसरण कर रहे हैं।

माधोपुरी ने एक आत्मकथा लिखी है जिसमे उन्होंने जिक्र किया की "आज भी दलितों के श्मशान घाट अलग हैं, गुरुद्वारों से उनके सामाजिक बहिष्कार की घोषणाएं होती हैं."| धान के मौसम के दौरान, कई रिपोर्टें सामने आती हैं कि अमीर किसान धान की बुवाई के लिए अपनी दरें तय करते हैं और अगर दलित खेत मजदूर दरों का विरोध करते हैं तो उन्हें सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। पंचायत में हिस्सेदारी, ज़मीन प्राप्ति संघर्ष समिति और कई लम्बी लड़ाईया चली है| 

2007 से 2017 के बीच दस साल के एसएडी शासन के तहत पंजाब में हुए कई मुद्दों ने पार्टी के समर्थन आधार को समाप्त कर दिया। इनमें नशीले पदार्थों की तस्करी, स्थानीय अकाली नेताओं की गुंडागर्दी और बरगाड़ी गांव में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और पुलिस की गोली से दो युवकों की मौत शामिल हैं। अकाली दल के वोट  में गिरावट 2017 के चुनावों में देखने को मिलती है| कई लोग बादल परिवार पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन करके और नरेंद्र मोदी सरकार में सत्ता का आनंद लेते हुए अपने सभी सिद्धांतों को त्याग दिया। 

कई मुद्दे है, जो यह उठा सकते है, कईयों की आवाज बन सकते है| बी.एस.पी और एस.ए.डी के पास दलितों, पिछड़ों और किसानो के लिए बहुत कुछ है करने के लिए| यह गठबंधन एक बड़ा और मज़बूत गठबंधन बन कर  उभर सकता है| 

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