Skip to main content

अंबेडकर और मानवाधिकार - १० दिसंबर विश्व मानवाधिकार दिवस




 १० दिसंबर विश्व मानवाधिकार दिवस और आंबेडकर का जिक्र न करे ऐसा हो ही नहीं सकता| डॉ. बी.आर. अंबेडकर, जिन्हें हम  "बाबासाहेब" के नाम से भी जानते है, के लिए मानवाधिकार सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से उत्पीड़ित और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए सामाजिक न्याय, समानता और सम्मान प्राप्त करने के लिए मौलिक थे। मानवाधिकारों के बारे में उनकी समझ स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों में गहराई से निहित थी, जिसे उन्होंने न्यायपूर्ण और समावेशी समाज के निर्माण के लिए आवश्यक बताया। मैंने अंबेडकर जी मानवाधिकारों को किस तरह से देखते थे, अपनी समझ के हिसाब से कुछ प्रमुख पहलू नीचे प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हु:


1. समानता और सामाजिक न्याय

बाबासाहेब जी ने इस विचार का समर्थन किया कि जाति, धर्म, लिंग या वर्ग की परवाह किए बिना सभी व्यक्ति समान हैं। उनका मानना ​​था कि जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता मानवीय गरिमा और समानता के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करती है।

उन्होंने दलितों और अन्य हाशिए पर पड़े समुदायों के अधिकारों की वकालत करते हुए जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए अथक प्रयास किया।

2. गरिमा और आत्म-सम्मान

अंबेडकर जी के लिए, मानवाधिकार केवल कानूनी अधिकार नहीं थे, बल्कि गरिमा और आत्म-सम्मान का भी मामला थे। उनका मानना ​​था कि किसी भी व्यक्ति या समूह को हीन या अमानवीय नहीं माना जाना चाहिए।

3. आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता

उन्होंने तर्क दिया कि सामाजिक और आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता अधूरी है। उनके लिए, मानवाधिकारों में शिक्षा, रोजगार और संसाधनों तक पहुँच का अधिकार शामिल था जो लोगों को सम्मानजनक जीवन जीने में सक्षम बना सकते थे।

4. संविधानवाद

अंबेडकर जी ने भारतीय संविधान तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कहने में दो राय नहीं की उनके बिना आज का भारतीय सविधान को सोचना न मुमकिन है, जिसमें मौलिक अधिकारों की मजबूत गारंटी शामिल है| ये अधिकार कानून के समक्ष समानता, भेदभाव का निषेध और भाषण, धर्म और संघ जैसे स्वतंत्रताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।

उन्होंने संविधान को मानवाधिकारों को संस्थागत बनाने और हाशिए पर पड़े समूहों को उत्पीड़न से बचाने के लिए एक उपकरण के रूप में देखा।

5. महिला अधिकार

अंबेडकर जी लैंगिक समानता के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने महिलाओं के शिक्षा, संपत्ति और समाज में समान भागीदारी के अधिकार पर जोर दिया, और कहा कि महिलाओं के सशक्तिकरण के बिना कोई भी समाज प्रगति नहीं कर सकता।

6. वैश्विक परिप्रेक्ष्य

अंबेडकर जी की मानवाधिकारों की समझ भारत से परे तक फैली हुई थी। वे समानता और न्याय के लिए वैश्विक आंदोलनों से अवगत थे, और उनके विचार सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा (1948) जैसे दस्तावेजों में निहित सार्वभौमिक सिद्धांतों के अनुरूप थे। उनके विचारों को प्रतिबिंबित करने वाले प्रमुख उद्धरण: "जाति एक धारणा है; यह मन की एक अवस्था है। जाति के विनाश का मतलब भौतिक अवरोध का विनाश नहीं है। इसका मतलब एक वैचारिक परिवर्तन है।" "मैं किसी समुदाय की प्रगति को महिलाओं द्वारा हासिल की गई प्रगति की डिग्री से मापता हूँ।" "राजनीतिक लोकतंत्र तब तक नहीं टिक सकता जब तक कि उसके आधार में सामाजिक लोकतंत्र न हो। "संक्षेप में, बाबासाहेब के लिए, मानवाधिकार उत्पीड़न को मिटाने, सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने और यह सुनिश्चित करने का एक साधन था कि प्रत्येक व्यक्ति सम्मान और समान अवसर के साथ रह सके।

Comments

Popular posts from this blog

डी. के. खापर्डे एक संगठात्मक सोच

कई महाराष्ट्रियन लोगों ने कांशीराम जी के सामाजिक आंदोलन और राजनैतिक आंदोलन में साथ दिया और डी के खापर्डे जी उनमे से थे जो अग्रणीय थे, और यह  में  कहने  में  भी अतिश्योक्ति  व गलत  नहीं की कांशीराम जी डी के खापर्डे जी के कारण ही कांशीराम बनने की राह पर चले| डी के खापर्डे जी बामसेफ के गठन से लेकर अपने परिनिर्वाण तक खापर्डे जी बामसेफ को फुले-अंबेडकरी विचारधारा का संगठन बनाने मे मेहनत और ईमानदारी के साथ लगे रहे।     डी. के. खापर्डे  जी  का जन्म 13 मई 1939 को नागपुर (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनकी शिक्षा नागपुर में ही हुई थी।पढाई के बाद उन्होंने डिफेन्स में नौकरी ज्वाइन कर ली थी। नौकरी के वक़्त जब वे पुणे में थे, तभी कांशीराम जी और दीनाभाना वालमीकि जी उनके सम्पर्क में आये। महाराष्ट्र से होने के नाते खापर्डे जी को बाबा साहेब के बारे में व उनके संघर्ष के बारे में बखूबी पता था और उनसे वे प्रेरित थे| उन्होंने ने ही कांशीराम जी और दीनाभना जी को बाबा साहेब जी और उनके कार्यो, संघर्ष  व उनसे द्वारा चलाये आन्दोलनों  के बारे में बताया था| उ...

भाषा के साथ हमारी संस्कृति व इतिहास भी विलुप्ति पर

  पिछले हफ़्ते की बात है जब मैं अपने पुश्तैनी गाँव गया था। बहुत सालों बाद अपनी दादी से मिला और उनके मुँह से कोशारी सुनना बहुत मज़ेदार था। हमारे दादा, दादी, पिताजी, चाचा और उस समय के बहुत से लोग कोशारी बोलते थे। अब मैं देख रहा हूँ या यूँ कहूँ कि अब मैं ध्यान दे रहा हूँ, आजकल के लोग कोशरी बोलना भूल गए हैं, मैं भी उसी श्रेणी में आता हूँ, मैं कोशरी नहीं बोलता, मुझे बुरा लगा। दिल्ली वापस आने के बाद, मैंने इंटरनेट पर खोजा कि भारत की कितनी भाषाएँ व बोलिया विलुप्त हो गई हैं| यह चिंताजनक है कि भारत में 197 भाषाएँ संकटग्रस्त हैं, जिनमें से 81 असुरक्षित हैं, 63 संकटग्रस्त हैं, 6 गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं, 42 गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं और 6 पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं। और बोलियों का तो हिसाब भी कही ठीक से नहीं मिलता|  (संदर्भ: https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/extinct-endangered-vulnerable-tale-of-indias-linguistic-heritage/historic-destruction/slideshow/70601865.cms और https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_endangered_languages_in_India) दादी जी से आगे बातें...

बी.एस.पी और शिरोमणि अकाली दाल गठबंधन मेरी नज़र से

बहुजन समाज पार्टी ( बी.एस.पी) और शिरोमणि अकाली दाल (एस.ए.डी) गठबंधन आज की ही न्यूज़ है| पहली बार दोनों साथ नहीं आये है बल्कि कांशीरामजी के समय भी दोनों पार्टिया साथ आयी थी| १९१५ में बी.एस.पी ने एस.ए.डी को सपोर्ट किया था, १९९६ के लोकसभा चुनाव भी साथ में लड़े थे जिसमे कांशीराम जी होशियारपुर से जीते थे| इसके कुछ ही महीनो बाद एस.ए.डी ने बी.एस.पी से नाता तोड़ बीजेपी से नाता जोड़ लिया| १९९७ में एस.ए.डी ने बीजेपी के साथ मिल कर सरकार भी बनायीं| करीब २५ साल बाद फिर दोनों पार्टिया साथ में आयी| जून-२०२२ में दोनों ने मिल कर विधानसभा का चुनाव लड़ा| आज मायावती जी घोषणा करती हैं कि यह गठबंधन २०२४  लोकसभा भी साथ में चुनाव लड़ेगा| देखने वाली बात है की इस बार मायावती जी खुद सुखबीर सिंह बदल जी के घर गयी थीl जून-२०२३ में सतीश चंद्र मिश्रा जी दिखाई दिए थे| क्या मायावती जी ने इस बार खुद २०२४ की कमान संभाली है?  अगर इतिहास के कुछ पन्ने पलटाये तो इस गठबंध के पास बहुत कुछ कर दिखने का बशर्ते यह गठबंधन सिर्फ चिनावी घोषणा बन कर न रह जाये| पंजाब में दलित करीब ३१% और पिछड़े भी करीब ३१% माने जाते है जोकि काफी...