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बहुजन और वंचितों की राजनैतिक की दशा

 आज बहुजन व वंचितों की राजनीती कहा जा रही है क्या अब कोई सिर्फ एक नेता बहुजनों व वंचितों की अगवाई कर पायेगा| बाबा साहेब आंबेडकर जी के समय स्वाभिमान, गरिमा और अपने पर हुए अत्याचार की बातें करने वालों के पीछे बहुजन व वंचित जनता थी| और बाबा साहेब आंबेडकर जी के बाद भी जनता की लगभग यही मांग थी| बाबा साहेब आंबेडकर जी ने सामाजिक (समता सैनिक दाल), धार्मिक (भारतीय बौद्ध महासंघ) और राजनैतिक (रिपब्लिक पार्टी ऑफ़ इंडिया) ढांचे जनता को दिये थे पर उनके जाने के बाद तीनो ढांचे या तो बुरी तरह बिखर गए या फिर कांग्रेस के पीछ लग्गू बन गए| जनता का धीरे धीरे इन संस्थाओं पर से विश्वास उठता जा रहा था और लोग १९७० के दशक में दलित पैंथर को एक आशा की नज़र से देखने लगे थे| दलित पैंथर भी महाराष्ट्र से आगे नहीं जा पायी| दूसरी और बाबा साहेब आंबेडकर जी के सविंधान की वजह से एक शिक्षित पीढ़ी बनाने लगी जिसमे ना केवल सामाजिक, राजनैतिक समझ व जागरूकता थी बल्कि व्यापारिक व  आर्थिक समझ व जागरूकता भी थी| सरकारी कामो की जानकारी व वैश्विक पहुंच भी बनाने लगी थी| १९८० के बाद यही बहुजन और वंचित समाज समता सैनिक दाल, भारतीय बौद्ध महासंघ और रिपब्लिक पार्टी ऑफ़ इंडिया का विकल्प ढूढने लगा था| इसी के चलते कई बहुजन व वंचितों की बातें करने वाले नेता सामने आये और लोकल लेवल पर बढ़ने लगे| कांशीराम जी ही थे जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा ख्याति पायी | इस समय बहुजन व वंचित जनता तीन हिस्सों में बट गयी थी| एक पुराने पीछ लग्गू लोगों के साथ थे, दूसरे कांशीरामजी के साथ जुड़ गए थे और तीसरे लोकल लेवल पर काम कर रहे थे| १९९० में भी बहुजनो व वांछितों के स्तीथी में कुछ ज्यादा सुधार नहीं १९९० में भी बहुजनो व वांछितों के स्तीथी में कुछ ज्यादा सुधार नहीं हुआ था| बी. जे. पी भी अब के प्रमुख राजनैतिक पार्टी के रूप में उभर चुकी थी| बहुजन व वंचितों के बिच में अब और विभाजन होने जा रहा था| एक पीछ लग्गू जो अभी भी कांग्रेस के साथ था, दूसरा जो कांशीराम जी के साथ था, तीसरा लोकल लेवल पर अभी भी काम कर रहा था और एक चौथा जो पीछ लागू ही था पर सत्ता के साथ रहना पसंद करता था और समझता था की कांग्रेस ने कुछ नहीं किया शायद बी. जे. पी कर दे| कांशीराम जी के बाद जनता और बिखर गयी| लोकल लेवल पर कई नेता और मजबूत हुए और एक नयी पीढ़ी देखने को मिलती है| सही नेता मिलाने पर जनता मौका देती है यह नयी पीढ़ी ने साबित कर दिया| अब बदलते परिपेक्ष में जहा सरकारी नौकरिया काम हो गयी है, व्यसायिकरण बढ़ रहा है, निजी संस्थाए बढ़ रही है, शिक्षाए महगी हो रही है| बहुजनो व वंचित जनता भी इसमें भागीदारी ढूंढ रही है| ऐसे में क्या अब बहुजनो व वंचितों की आवाज और राजनैतिक साझेदारी के लिए क्या पर्याय बचा है| शायद अब किसी एक पार्टी जो मायावती के नेतृत्व में बी. यस. पी. चाहती है का आना मुश्किल है और लगता नहीं की पीछ लग्गू नेताओ का सुधारना  होगा और उम्मीद नहीं है कि सत्तारूढ़ दल अपनी विचारधारा से समझौता कर के बहुजनो और वंचितों के लिए सही में कुछ करेंगे | क्या इन लोगों को अभी भी जो कुछ मिल रहा है उसी से समझौता करना होगा, इससे कुछ लोग जो पहले से भी संभ्रांत बन गए है उन्हें कुछ नहीं होगा पर जो लोग अभी भी गरीब है, शिक्षा की जरुरत है वो फिर उसी हालत में रहेंगे|  या सभी स्थानीय स्तर पर एक सामान्य विकल्प और एक मजबूत राजनीतिक की उपस्थिति दर्ज करा सकते है? स्तिथि अब सही जटिल हो गयी है और उसका समाधान मिल कर ही निकलना होगा| 


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