22 प्रतिज्ञाएँ के बारे में कुछ भी लिखने से पहले आइए बाबासाहेब जी के जीवन के कुछ पहलुओं को देखें ताकि हम 22 प्रतिज्ञाओं के दृष्टिकोण को देख व समझ सके। यह पूर्ण रूप से मेरे व्यक्तिगत मत है| १३ ओक्टम्बर १९३५ को येवला सम्मलेन में बाबा साहेब जी ने कहा था की अंतिम निर्णय लेने का समय आ गया है, हम हिन्दू धर्म का परित्याग कर कोई और धर्म ग्रहण करे जिसमे समानता का दर्जा मिले और उचित आचरण हो| आगे कहा की दुर्भाग्य था की हिन्दू धर्म में जन्म हुआ जिस पर मेरा कोई अधिकार नहीं था पर मैं शपथ लेता हू की मैं हिन्दू धर्म में मरूंगा नहीं| बाबा साहब जी ने ऐसा इसीलिए कहा क्योकि इससे पहले उनका जीवन हिन्दू धर्म में सुधर लेन में ही बिता पर हिन्दू धर्म में रत्ती भर का फरक नहीं आया| उन्होंने नानकचंद रत्तू जी से कहा था की हिन्दू लोग बुरे नहीं है पर उनका धर्म ही उच नीच पर आधारित है जोकि उनके आचरण को उससे बहार निकलने नहीं देता| १४ ओक्टम्बर १९५६ दशहरे के दिन नागपुर में बाबा साहेब जी ने बुद्ध धर्म अंगीकार कर लिया| उस जगह को हम आज दीक्षाभूमि के नाम से जानते है| बाबा साहेब जी को २१ साल लग गए एक ऐसा धर्म ढूढने में जो की उनके समाज, समस्त बहुजनो वंचितों के लिए समानता देता हो| उनको तो उनके लिए कई ऐसे धर्म के बुलावे आये थे जो उन्हें पता नहीं क्या क्या दे रहे थे पर उन्होंने ऐसा धर्म स्वीकार किया जो समस्त बहुजनो वंचितों के लिए प्रासंगिक हो| इन २१ सालों में बाबा साहेब जी ने देखा होगा की जिस तरह उच्च जात वालों के आचरण में हिन्दू धर्म कूट कूट कर भरा है वैसे ही बहुजनो व वंचितों के आचरण में भी हिन्दू धर्म कूट कूट कर भरा है| बाबा साहेब जी चाहते थे की उनके बहुजन व वंचित समाज वाले हिन्दू धर्म को त्यागने के साथ वह की कुरीतियों से भी बाहर आये| ये २२ प्रतिज्ञा उन २१ सालो के इंतज़ार में से एक है जिन्हे बाबा साहेब जी ने बड़े विचार व समझ कर गढ़े है|
वो चाहते थे की बहुजन और वंचित समाज भगवानो से दूर रहे और किसी भी अन्धविश्वास को न माने (१. मुझे ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई आस्था नहीं होगी और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा।२. मुझे राम और कृष्ण में कोई विश्वास नहीं होगा, जिन्हें भगवान का अवतार माना जाता है और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा।३. मुझे 'गौरी', गणपति और हिंदुओं के अन्य देवी-देवताओं में कोई विश्वास नहीं होगा और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा।४. मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता।)
वो चाहते थे की बुद्ध के बारे में झूठे प्रचार में न पड़े (५. मैं नहीं मानता और न मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे। मैं इसे सरासर पागलपन और झूठा प्रचार मानता हूं।)
वो चाहते थे को कर्म कंडो से दूर रहे (६. मैं 'श्रद्धा' नहीं करूंगा और न ही 'पिंड-दान' करूंगा। ७. मैं बुद्ध के सिद्धांतों और शिक्षाओं का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूंगा। ८. मैं ब्राह्मणों द्वारा किसी भी समारोह को करने की अनुमति नहीं दूंगा।)
वो चाहते थे की समाज समता पर आधारित हो (९. मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करूंगा। १०. मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूंगा।)
वो चाहते थे की हम बुद्ध धर्म को अपने आचरण में लाये (११. मैं बुद्ध के 'महान अष्टांगिक मार्ग' का अनुसरण करूंगा। १२. मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित 'परमिताओं' का पालन करूंगा। १३. मैं सभी जीवों पर दया और करूणा रखूंगा और उनकी रक्षा करूंगा। १४. मैं चोरी नहीं करूंगा। १५, मैं झूठ नहीं बोलूंगा। १६. मैं शारीरिक पाप नहीं करूंगा। १७. मैं शराब, नशीले पदार्थ आदि मादक द्रव्यों का सेवन नहीं करूँगा। १८. मैं नेक अष्टांगिक मार्ग पर चलने का प्रयास करूंगा और अपने दैनिक जीवन में करुणा और करुणा का अभ्यास करूंगा।)
वो चाहते थे की जैसे हिन्दू धर्म लोगों के आचरण में बसा है वैसे ही अब हिन्दू धर्म आचरण को छोड़ बुद्ध धर्म भी बहुजनो व वंचितों के आचरण में बसे (१९. मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूं जो मानवता के लिए हानिकारक है और मानवता की उन्नति और विकास में बाधा डालता है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और बौद्ध धर्म को अपना धर्म मानता हूं। २०. मेरा दृढ़ विश्वास है कि बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है। २०. मुझे विश्वास है कि मेरा पुनर्जन्म हो रहा है।)
और जब सब ऊपर की प्रतिज्ञाएं पूरी हो जाएगी हो मैं अपने आप बुद्ध धर्म में सम्मलित हो जाऊंगा और बुद्धिस्ट हो जाऊंगा (२२. मैं सत्यनिष्ठा से घोषणा और पुष्टि करता हूं कि मैं इसके बाद बुद्ध और उनके धम्म के सिद्धांतों और शिक्षाओं के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करूंगा।)
बाबा साहेब जी की न केवल नागपुर में धम्म दीक्षा की योजना नहीं बनायीं थी बल्कि भारत के सभी बड़े शहरों में धम्म दीक्षा की उनकी योजना थी| उनके अंतिम समय पर जब लाखों लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए इक्कठा हुए थे तब बाबा साहेब जी के करीबी दादा साहेब बी. के, गायकवाड़ जी ने उपस्तिथ लाखों लोगों से पूछा की क्या वे धम्म दीक्षा लेना चाहते है, सभी लोगों ने महिलाये, बच्चे, आदमियों ने हाथ उठा कर उनका समर्थन किया| भंते आनंद कौशल्यायन जी के दाह संस्कार प्रवचन के बाद, सामूहिक सबसे बड़ा धर्मांतरण का कार्यक्रम हुआ और वहा पर भी २२ प्रतिज्ञा दोहराई गयी| बाबा साहेब जी की योजना के तहत पहले मुंबई में ही धर्मान्तरण का कार्यक्रम होना था पर किसी कारणवश नागपुर में हुआ, पर यहां नागपुर से भी बड़ा जन सैलाब के साथ उनके अंतिम समय में सबसे बड़े धर्मान्तरण हुआ और कई लोगों ने बुद्ध की रह पकड़ी|
आज दिल उदास होता है यह देख कर की हम लोग सीधे २२ वे प्रतिज्ञा को तो याद रखते है और पहले की २१ प्रतिज्ञा भूल जाते है| बाबा साहेब जी के सच्चे वंशज व अनुयायी होने के नाते हमे २२ प्रतिज्ञाओं का पालन १ से २२ तक करना चाहिए| (रेफ. डॉ आंबेडकर के अंतिम कुछ वर्ष - नानकचंद रत्तू )
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