Skip to main content

वोट का रास्ता बुद्धा और बाबा साहेब से होते हुए जाता है

 हम बहुजनो और वंचितों के लिए बुद्धा और बाबा साहेब किसी देवता से कम नहीं है और हम जाने अंजाने उनके लिए अंध भक्त बन जाते है| इसी का फायदा ले कर पहले भी और अभी भी कई लोगों के लिए यह के राजनैतिक हथकंडा है और वो जानते है की हमारे वोटों का रास्ता बुद्धा और बाबा साहेब से होते हुए उनके झोली में जा कर गिर जाता है| मुझे राजेंद्र पल गौतम भी इसके उपवाद नहीं लगते | मैंने पहले भी अपनी मंशा जाहिर की थी की क्या राजेंद्र पल गौतम दूसरे उदितराज तो नहीं? अब जब AAP पार्टी के प्रमुख प्रचारक के तौर पर उनका नाम आता है तो बहुत कुछ समझने वाली बात है| क्या यह सोची समझी चाल है, क्या केजरीवाल को पहले से अंदेशा हो चला था की अब बहुजन वोट उससे छिटकते जो रहे है, क्या राजेंद्र पाल  गौतम को बहुजन व वंचितों को आकर्षित करने के लिए हीरो बनाया गया, इससे एक और बात समझने वाली है AAP नहीं तो कौन किस के लिए राजेंद्र पल गौतम को हीरो बनाया गया BJP या BSP?

पहले कांग्रेस, फिर NCP, फिर BJP और अब AAP हमारे लोगों को हीरो बना कर बहुजन व वंचितों के वोटों को लेते और ले रहे है| क्या हम धार्मिक और राजनैतिक परिपक्वता को दिखा सकते है नहीं तो कब? हमारे भावनावो का सरे आम मज़ाक उड़ाते हुए CONGRESS, NCP, BJP, SHIVSENA और AAP बुद्धा को शिव और बाबा साहेब को सावरकर के सामान बताते नहीं थकते| बहुजन व वंचित लोगों को सिर्फ बेबसी और लाचारी के अलावा कुछ नहीं मिलता|  कई लोग कहते है इसमें बुराई क्या है मैं बुद्धा को मनाता हु और बाबा साहेब को दिल से मानता हु पर राजनैतिक रस्ते CONGRESS, NCP, BJP, SHIVSENA और AAP से मिलते है| तो मैं यही कहूंगा की ऐसे लोग राजनीती समाज के लिए ना कर के कुछ अपने मुट्ठी भर लोगों के लिए ही करते है| हम लोग सामाजिक और सांस्कृतिक परिपक्वता के आभाव में ऐसा करते है| मैं देखता हु आज भी हम में से कई लोग लोग दिल से बुद्धिस्ट सस्कृति के नहीं है, अपने घरों में गणपति की मूर्ति भगवान की तरह रखते है| बाबा साहेब बोले थे जिनको अपना इतिहास नहीं पता वो लोग इतिहास कभी नहीं बना सकते| सामाजिक तौर पर हम कमजोर ही दिखते है| जब तक सांस्कृतिक और सामाजिक परिपक्वता नहीं आएगी लोग हमारा ऐसे ही उपयोग कर हमे लाचार और बेबस छोड़ कर वोट बैंक की तरह उपयोग करते रहेंगे| पहले नेताओं और उनके पीछे हम लोग सिर्फ और सिर्फ वोट की तरह उपयोग होते रहेंगे और बेबसी से बुद्धा को शिव और बाबा साहेब को सावरकर के बराबर सुनते और देखते रहेंगे| 

Comments

Popular posts from this blog

डी. के. खापर्डे एक संगठात्मक सोच

कई महाराष्ट्रियन लोगों ने कांशीराम जी के सामाजिक आंदोलन और राजनैतिक आंदोलन में साथ दिया और डी के खापर्डे जी उनमे से थे जो अग्रणीय थे, और यह  में  कहने  में  भी अतिश्योक्ति  व गलत  नहीं की कांशीराम जी डी के खापर्डे जी के कारण ही कांशीराम बनने की राह पर चले| डी के खापर्डे जी बामसेफ के गठन से लेकर अपने परिनिर्वाण तक खापर्डे जी बामसेफ को फुले-अंबेडकरी विचारधारा का संगठन बनाने मे मेहनत और ईमानदारी के साथ लगे रहे।     डी. के. खापर्डे  जी  का जन्म 13 मई 1939 को नागपुर (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनकी शिक्षा नागपुर में ही हुई थी।पढाई के बाद उन्होंने डिफेन्स में नौकरी ज्वाइन कर ली थी। नौकरी के वक़्त जब वे पुणे में थे, तभी कांशीराम जी और दीनाभाना वालमीकि जी उनके सम्पर्क में आये। महाराष्ट्र से होने के नाते खापर्डे जी को बाबा साहेब के बारे में व उनके संघर्ष के बारे में बखूबी पता था और उनसे वे प्रेरित थे| उन्होंने ने ही कांशीराम जी और दीनाभना जी को बाबा साहेब जी और उनके कार्यो, संघर्ष  व उनसे द्वारा चलाये आन्दोलनों  के बारे में बताया था| उ...

भाषा के साथ हमारी संस्कृति व इतिहास भी विलुप्ति पर

  पिछले हफ़्ते की बात है जब मैं अपने पुश्तैनी गाँव गया था। बहुत सालों बाद अपनी दादी से मिला और उनके मुँह से कोशारी सुनना बहुत मज़ेदार था। हमारे दादा, दादी, पिताजी, चाचा और उस समय के बहुत से लोग कोशारी बोलते थे। अब मैं देख रहा हूँ या यूँ कहूँ कि अब मैं ध्यान दे रहा हूँ, आजकल के लोग कोशरी बोलना भूल गए हैं, मैं भी उसी श्रेणी में आता हूँ, मैं कोशरी नहीं बोलता, मुझे बुरा लगा। दिल्ली वापस आने के बाद, मैंने इंटरनेट पर खोजा कि भारत की कितनी भाषाएँ व बोलिया विलुप्त हो गई हैं| यह चिंताजनक है कि भारत में 197 भाषाएँ संकटग्रस्त हैं, जिनमें से 81 असुरक्षित हैं, 63 संकटग्रस्त हैं, 6 गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं, 42 गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं और 6 पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं। और बोलियों का तो हिसाब भी कही ठीक से नहीं मिलता|  (संदर्भ: https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/extinct-endangered-vulnerable-tale-of-indias-linguistic-heritage/historic-destruction/slideshow/70601865.cms और https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_endangered_languages_in_India) दादी जी से आगे बातें...

बी.एस.पी और शिरोमणि अकाली दाल गठबंधन मेरी नज़र से

बहुजन समाज पार्टी ( बी.एस.पी) और शिरोमणि अकाली दाल (एस.ए.डी) गठबंधन आज की ही न्यूज़ है| पहली बार दोनों साथ नहीं आये है बल्कि कांशीरामजी के समय भी दोनों पार्टिया साथ आयी थी| १९१५ में बी.एस.पी ने एस.ए.डी को सपोर्ट किया था, १९९६ के लोकसभा चुनाव भी साथ में लड़े थे जिसमे कांशीराम जी होशियारपुर से जीते थे| इसके कुछ ही महीनो बाद एस.ए.डी ने बी.एस.पी से नाता तोड़ बीजेपी से नाता जोड़ लिया| १९९७ में एस.ए.डी ने बीजेपी के साथ मिल कर सरकार भी बनायीं| करीब २५ साल बाद फिर दोनों पार्टिया साथ में आयी| जून-२०२२ में दोनों ने मिल कर विधानसभा का चुनाव लड़ा| आज मायावती जी घोषणा करती हैं कि यह गठबंधन २०२४  लोकसभा भी साथ में चुनाव लड़ेगा| देखने वाली बात है की इस बार मायावती जी खुद सुखबीर सिंह बदल जी के घर गयी थीl जून-२०२३ में सतीश चंद्र मिश्रा जी दिखाई दिए थे| क्या मायावती जी ने इस बार खुद २०२४ की कमान संभाली है?  अगर इतिहास के कुछ पन्ने पलटाये तो इस गठबंध के पास बहुत कुछ कर दिखने का बशर्ते यह गठबंधन सिर्फ चिनावी घोषणा बन कर न रह जाये| पंजाब में दलित करीब ३१% और पिछड़े भी करीब ३१% माने जाते है जोकि काफी...