मैं इतना ही कहूंगा कि आज की स्थिति बहुजनों और दलितों के लिए बिल्कुल भी अनुकूल नहीं है। न तो कोई सामाजिक संगठन और न ही कोई राजनीतिक संगठन बहुजनों और वंचितों की आवाज मजबूती से उठाता नजर आ रहा है। लोग पहले से ज्यादा जागरूक हुए हैं, लोग पहले से ज्यादा सजग हुए हैं, वे समाज के लिए अपनी भूमिका निभाने को तैयार हैं और कोई हिस्सों में साझेदारी भी बढ़ी है| कांशीराम जी ने कहा था की हमे इतनी ताकत बनानी होगी की अगर हम सरकार न भी बना सके पर हमारे बिना हमारे सरकार चलनी नहीं चाहिए | आज आज़ादी के ७५ वर्ष में हम है पर हमारे लोग और हमारे संगठन आज भी वैसी ताकत नहीं बना पाए| आज भी हम सत्ता के गलियारों में झाकते है की कोई हमे सत्ता की भागीदारी हमारे झोली में डाल दे ठीक वैसे ही जैसे कोई मंदिर के सीढ़ियों पर इंतज़ार करता है| सामाजिक संगठनो की तो और हालत और भी गंभीर है इसीलिए उनकी बात नहीं करूँगा| राजनैतिक संगठनों में भी कुछ ज्यादा बदलाव नज़र नहीं आता| वामन मेश्राम की बात करू तो शरद पवार (https://www.youtube.com/watch?v=qVIIqR_O-BA) को खुले आम सपोर्ट करने की बात करते है| वही प्रकाश आंबेडकर कभी एकनाथ शिंदे (https://www.youtube.com/watch?v=hU8S-1lG3XM) की भेट प्रसारित करवाते है अपने लोगों से तो कभी उद्धव ठाकरे के साथ की चर्चा प्रसारित होती है| आठवले तो सत्ता लालशा में समाज को कभी का भूल गए है| अब कई पूछेंगे की इसमें बुराई क्या है| उनसे मैं एक ही बात बोलूंगा की वो ताकत कही गुम है इस गठबंधन में जो कांशीराम जी ने कही थी, वो जज्बा खोया हुवा है जो बाबा साहेब ने दिया था समाज के लिए| आज स्टालिन, के.के. आर जैसे नेता मौजूद है जो खुद सत्ता पर काबिज है पर जैसे हालत चल रहे है एक एक कर हर राज्य में किसी न किसी तरह से सत्ता पाने वाले किसी भी हद तक जा सकते है| उन से बचने के लिए और कई और राज्यों में सत्ता पर काबिज होने के लिए आज कोई प्रयास नज़र नहीं आते| मायावती, अखिलेश, लालू प्रशाद यादव जैसे नेताओ की जमीं भी जाती जा रही है| एक बहुजनो व वंचितों का साँझा न्यूनतम कार्यक्रम के लिए सभी का गठबंधन होना चाहिए| BSP एक ऐसी पार्टी है जिसका का हर राज्य के जाना धार है, मेरे ख्याल से उन्हें ही पहल करनी चाहिए और दूसरे संगठनो को भी BSP का राष्ट्र स्तरीय दर्जा कायम रखने में उनकी मदत करनी चाहिए| आप जानते होंगे की आज कल बाबा साहेब का नाम ले कर, सिर्फ नाम ही नहीं छाती पिट पिट कर नाम लेने वाली पार्टिया कैसे बहुजनो व वंचितों के वोटों से सत्ता पर काबिज हो जाती है पर बाबा साहेब के बताये रस्ते नहीं चलते को नहीं देखती| हमारे लोगों को ये देखना होगा की बाबा साहेब का नाम ले कर हमे कोई बेवकूफ न बना सके और वोट कही गलत पार्टी में न चला जाये| आशा करता हु को मेरा यह ब्लॉग पार्टिया पढ़े और के साथ आने की पहल करे
कई महाराष्ट्रियन लोगों ने कांशीराम जी के सामाजिक आंदोलन और राजनैतिक आंदोलन में साथ दिया और डी के खापर्डे जी उनमे से थे जो अग्रणीय थे, और यह में कहने में भी अतिश्योक्ति व गलत नहीं की कांशीराम जी डी के खापर्डे जी के कारण ही कांशीराम बनने की राह पर चले| डी के खापर्डे जी बामसेफ के गठन से लेकर अपने परिनिर्वाण तक खापर्डे जी बामसेफ को फुले-अंबेडकरी विचारधारा का संगठन बनाने मे मेहनत और ईमानदारी के साथ लगे रहे। डी. के. खापर्डे जी का जन्म 13 मई 1939 को नागपुर (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनकी शिक्षा नागपुर में ही हुई थी।पढाई के बाद उन्होंने डिफेन्स में नौकरी ज्वाइन कर ली थी। नौकरी के वक़्त जब वे पुणे में थे, तभी कांशीराम जी और दीनाभाना वालमीकि जी उनके सम्पर्क में आये। महाराष्ट्र से होने के नाते खापर्डे जी को बाबा साहेब के बारे में व उनके संघर्ष के बारे में बखूबी पता था और उनसे वे प्रेरित थे| उन्होंने ने ही कांशीराम जी और दीनाभना जी को बाबा साहेब जी और उनके कार्यो, संघर्ष व उनसे द्वारा चलाये आन्दोलनों के बारे में बताया था| उ...
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