१ दिसंबर १९५६, प्रातः ७:३० बजे थोड़ा जल्दी उठ कर बाबा साहेब ने मथुरा रोड पर लगी प्रदर्शनी देखने जाने की इच्छा प्रकट कर सभी को आश्चर्य कर दिया, थोड़े तरोताजा और प्रफुल्लित लग रहे थी| इन दिनों बाबा साहेब अपनी किताब "बुद्धा एंड कार्ल मार्क" को पूरा करने में ही लगे रहते थे और बहार बहुत कम ही निकलते थे| करीब १:३० बजे दोपहर को प्रदर्शनी के गेट पर पहुंचे| प्रदर्शनी के एक अधिकारी ने उनकी अगवाही की और प्रदर्शनी दिखने ले गया| उनको लोगों ने चारो और से घेर लिया था| बाबा साहेब प्रदर्शनी देख कर बहुत प्रशन्न और आश्चय हुए, भगवान बुद्धा की अलग अलग मुद्राओं में मुर्तिया कई देशों से प्रदर्शित थी| धीरे धीरे प्रदर्शनी देखने के बाद जब बाबा साहेब वापस गेट पर आये, पीछे मुड़े, एक कोने से दूसरे कोने तक नज़र दौड़ाई और बोले - "मेरे बुद्ध महान थे, मेरे बुद्ध महान थे" | सोहनलाल शास्त्री पहले से भी गेट पर मौजूद थे, बाबा साहेब के पास आये और बड़ी ही जिज्ञासापूर्ण पूछा, इतने विभिन्न विभिन्न मुद्राओं और चेहरे में भगवान बुद्ध को दर्शाया गया है, भगवान बुद्धा की असली शक्ल कैसी होगी बड़ा भ्रम है| बाबा साहेब मुस्कुराये और बोले भगवन बुद्ध के महापरिनिर्वाण के ६०० साल बाद तक उनका कोई चित्र, मूर्ति नहीं उपलब्ध थी| उसके बाद किसी ने अपनी कल्पना भगवान बुद्ध के आकार वाले बेवजह की चीजों के बारे में सोचकर अपना समय बर्बाद न करें। शायद इसीलिए बुद्ध मूर्ति पूजा का समर्थन नहीं करते| लौटते समय बाबा साहेब ने १, होर्डिंग एवेन्यू को देखा और बड़े गौर से देखते रहे, यहाँ वे पहले विधि मंत्री के रूप में रहे थे|
२ दिसंबर १९५६, बुद्ध के २५० वे महापरिनिर्वाण के उपलक्ष में तिब्बती गुरु दलाई लामा भारत पधारे थे और उन्ही के सम्मान में महरौली के पास स्थित अशोक बुद्धा विहार, नई दिल्ली के आयोजन किया गया| आयोजकों ने बाबा साहेब से भी अनुरोध किया| बाबा साहेब "बुद्धा और कार्ल मार्क" की वस्थता के कारन जाने में इच्छुक नहीं थे पर आयोजकों के निरंतर और कई बार आग्रह पर उन्हें मानना पड़ा| लोगों का सैलाब बाबा साहेब को देखने उमड़ पड़ा जब बाबा साहेब की कार अशोक विहार के परिषर पर रुकी| दोपहर २ बजे वापस घर पहुंचे और चिंता जताई की उन्हें अपनी पुष्तक पूरी करनी है| इसीलिए लाइब्रेरी जा कर कार्ल मार्क पर "कैपिटल" नमक किताब लेने नानक जी को कहा| श्याम को रफ नोट बनाये| श्याम को दूर ;दराज़ से कई लोग बाबा साहेब से मिलाने आये हुए थे, कई तो पार्टी कार्यकर्ता थे| उन्हने कहा आप लोग कार्य करते रहिये और आर. पी. आई की घोषणा का इंतज़ार करिये|
३ दिसंबर १९५६, बाबा साहेब ने नानक जी को फ़ोन कर बुलाया| कुछ आगंतुकों से मिले और कुछ देर बाद बालू कबीर ने एक फोटो भी खींचा जिसमे बाबा साहेब, सविता आंबेडकर, नानक रत्तू, डॉ. माधवजी मावलंकर, के. वि. कबीर शामिल थे| २६, अलीपुर के बंगले में एक ही बड़ा प्रवेश द्वार और उसी में एक छोटा सी खिड़की नुमा था जिसका प्रयोग ज्यादा तर होता था| द्वार के बगल में एक कमरा था जिसमे वृद्ध चौकीदार रामचंद्र और उसकी पत्नी रहती थी| फोटो खींचने के बाद बाबा साहेब को एक दम से रामचंद्र की याद आयी जोकि बुखार में था| बाबा साहेब ने नानकजी को बुलाया और रामचंद्र से मिलाने चले गए| रामचंद्र उठाने की बेबसता से बिस्तर से भी हाथ जोड़ कर अभिवादन करने लगा और रोने लगा बोले साहेब मेरा कोई भरोसा नहीं है, मेरे जाने के बाद पता नहीं मेरी पत्नी का क्या होगा| बाबा साहेब ने सांत्वना देते हुए कहा मरना तो सभी को है एक दिन मुझे भी, मैं नहीं डरता| नानक दवाई ले आएगा, तुम बिलकुल ठीक हो जाओगे कुछ भी और किसी भी बात की चिंता न करो| रामचंद्र अपने मालिक के हाल चाल पूछने आने से प्रश्नचित्त था| वापस अपने रूम में गए, थोड़े चिंतित थे| नानकजी ने बाबा साहेब के मन पसंद बुद्ध गीत लगाए और उनके सिर की मालिश करने लगे| थोड़ी देर बाद "बुद्धा और कार्ल मार्क" के अंतिम अध्याय पर नज़र डाली और नानकजी को दे दी| उसके टाइप होने के बाद बाबा साहेब करीब ११:३० कुछ और हस्त लिखित पेपर और दिए | नानकजी ने रात भर काम किया और वही सो गए|
४ दिसंबर १९५६, सुबह करीब १०:४० नानकजी के साथ बाबा साहेब संसद गए और वापसी में नानकजी को छोड़ते हुए घर गए| घर पर सविताजी नहीं थी, बाबा साहेबजी ने नौकरों से पूछा और बहुत गुस्सा हुए और सोने चले गए| जल्दी ही उठ गए और नानकजी के बारे में पूछा| करीब ५:३० बजे नानक जी पहुंचे और उन्होंने नानकजी को कुछ टाइप करने के लिए पेपर दिए बोले "प्राचीन भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति" और "बुद्धा और कार्ल मार्क" दोनों के साथ प्रकाशित करने के लिए वे प्रतिबद्ध है| उन्होंने २ पत्र बोल कर लिखवाये एक पी.के. आत्रे व दूसरा यस.यस.जोशी, ये दोनों महाराष्ट्र में कांग्रेस के विरोध में सय्युक्त आंदोलन के अग्रणी नेता थे| उन्हें बाबा साहेब आर. पी. आई. में शामिल करना चाहते थे| फिर उन्होंने विष्णु कुमार जो की दर्शन और तर्कशास्त्र के पूर्वकालीन शिक्षक और मुंबई के सिद्धाथ रात्रि हाई स्कूल के सहायक हेड मास्टर थे को उनके पत्र का उत्तर दिया| वे बाबा साहेब के साथ १४ ओक्टोबेर १९५६ नागपुर में धर्मान्तर के समय मौजूद थे| ९ देसंबदेर १९५६ को बुद्ध रीती से शादी करना चाहते थे| बाबा साहेब लिखते है की नव बौद्धों के विवाह समारोह में कोई हवन व सप्तपदी न हो, एक दम सरल होने चाहिए| वर वधु के बीच एक मिट्टी का बर्तन हो, जिसे मुख तक पानी से भर दिया जाये, वर वधु बर्तन के दोनों और खड़े हो| एक सूती धागे का सिरा बर्तन में और दूसरा सीना अपने हाथ में पकड़े रहते हो| कोई एक भंतेजी या जनता मंगलसुत्त का गान गए और है दोनों वर वधु श्वेत वस्त्र में हो| बस यही बौद्धों की शादी की रीत होनी चाहिए| श्याम को उन्होंने रंगून, काठमांडू, बर्मा व कई बुद्धिस्ट देशों को बुद्ध धम्म के विस्तार हेतु और दिल्ली व काठमंडू की वार्ताओं चर्चा लिखी| उनके पास बुद्ध धम्म को कैसे आगे बढ़ाया जाए पूरा ढांचा तैयार था| धार्मिक और व्यापारिक बारीकियों के साथ बुद्धिस्ट देशों को उन्होंने कहा की सही मौके पर अगर उन्होंने मदत नहीं की और उकनी हार की जिम्मेदारी उनकी होगी|
५ दिसंबर १९५६, सुबह उठ कर हाथ मुँह धो कर बहार आये और कुछ देर भगवान बुद्ध की मूर्ति के सामने रुके और श्रद्धा से हाथ जोड़ कर कुछ देर खड़े रहे| यह अब उनकी प्रतिदिन की किया हो गयी थी| कुछ महत्वपूर्ण पेपर को न पा कर थोड़े असहज हो गए| नानकजी ने वो पेपर उन्हें वापस दिए| उनकी असहजता से यह जान पड़ता था की पेपर कितने महत्वपूर्ण होंगे| करीब दोपहर के १२ बज चुके थे बाबा साहेब लॉन में बैठे थे, कुछ थके से लग रहे थे और तभी बहार कुछ शोर गुल सुनाई दिया| लोग बाबा साहेब जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे| बाबा साहेब ने उन्हें अंदर आने की आज्ञा दी| लोग अपने महानायक को देखने के लिए आतुर थे और उनके जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे| बाबा साहेब अपनी पालतू कुटिया "मोहिनी" के साथ बैठे हुए थे| थोड़ी देर बाद दलित वर्ग संघ दिल्ली,अध्यक्ष भगत अमिनचंद, गांधी टोपी, कढ़ाईदार कुरता पहने आये| बाबा साहेब के पैर छुए और कहा आशीर्वाद लेने आया हु| बाबा साहेब बोले तुझे पहले से ही बहुत आशीर्वाद मिला हुवा है और अब और क्या चाहिए| तुम मेरा समय बरबाद कर रहे हो अगर कुछ और नहीं कहना तो तुम जा सकते हो| अमिनचंद बेशर्मी से बोला बाबा साहेब आप जितना कांग्रेस को गरियाते हो, गालिया देते हो उतना ही फायदा हमे होता है, आवभगत, सौदेबाजी आसान हो जाती है| बाबा साहेब के चश्मे से उसे ऊपर से निचे तक देखा और कहा जैसे एक कुत्ता मालिकों की रोटी पर पलता है, उनके दिए कपडे पहनता है, उनके दिया आराम लेता है पर कौन सा खाना खाना है, कौन सा कपड़ा पहनना है और किस का और कब आराम चाहिए यह कुत्ता नहीं बताता और नाही बता सकता है| तुम अपने मालिकों को खुश करते रहो और दुम हिलाते रहो| उसके जाने के बाद बाबा साहेब नानकजी से बोले देखो लोग कितने निचे गिर गए है, इनमे मानवता, निज-सम्मान शेष नहीं रह गया है| शाशक दल द्वारा फेके टुकड़े के पेट भरने के अलावा इनका कोई काम नहीं है| ये लोग अपनी रोटी और फेकि रोटी में फर्क कब समझेंगे| श्याम को दो जैन नेताओ का प्रतिनिधि मंडल बाबा साहेब से मिलाने आया| उन्होंने बाबा साहेब को " श्रमण संस्कृति की दो धराये - बुद्ध और जैन" किताब भेट की| दोनों ने बाबा साहेब से कई विद्धतापूर्ण बातें की| बाबा साहेब थके हुए थे और बुद्ध धर्म की बाते करते उनमे अगल ही तेज दीखता मनो वे नव-बौद्ध हो|
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