कई दिनों से इस चिंता में परेशांन था की आखिर बहुजन और वंचितों की राजनीती कहा जा रही है| कई महान लोगों के द्वारा किया परिश्रम व बलिदान क्या अब ख़तम हो जायेगा| अभी फ़िलहाल के चुनाव नतीजों ने तो और भी परेशांन कर दिया| मुझे साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था या यह कहूंगा की समझ आने लगा की २०२४ में बहुजनो की राजनीती कहा जाएगी| आंदलनों, भारत बंद, कुछ जन सभाये और छोटे मोटे इधर उधर घेराव से कुछ नहीं हो रहा है| बहुजनो और वंचितों का प्रतिनिधित्व नहीं पहुंच पा रहा है सत्ता के गलियारे तक| हमारे कई नेता लोग कभी समाजवादी पार्टी, कभी एन. सी. पी, कभी कांग्रेस के साथ और तो कभी बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ते दिखे है पर नतीजा क्या? समाज को क्या मिला या -बाबा साहेब के रस्ते पर चले वे सब|
मुझे बी.एस.पी के अलावा अभी भी कोई पार्टी नहीं दिखती जो बहुजनो और वंचितों की आवाज़ बन सके| कोई और पार्टी न विधानसभा और ना ही कोई संसद पहुंचने में कामयाब रही है| मैं पिछले कुछ चुनाव के नतीजे देख रहा था और पाया की दूसरी अन्य दलित पार्टी के वजह से बी.एस.पी को कितना नुकसान हुवा और क्या यही एक कारन वोट डिवीज़न ही है जो बी.एस.पी को हरा रहा है| मैंने यह पाया की शायद ऐसा नहीं है| जहा बी.एस.पी जीती है वहा पर दूसरी अन्य बहुजन व वंचितों की पार्टी को मिले वोट अगर बीजेपी या कांग्रेस या आप में मिला लिए जाये तोभी बी.एस.पी के बराबर वोट नहीं होते है| मतलब बी.एस.पी के जीत पर कोई असर नहीं है| जहां बी.एस.पी हारी वहा पर अगर दूसरी बहुजनो व वंचितों की पार्टी के वोट मिला लिए जाये तो भी बी.एस.पी जितने की स्थिति में नहीं पहुँचती दिखती है| इसका मतलब फिर यह है की बी.एस.पी के हार पर दूसरे बहुजनो व वंचितों के वोटों का कोई फरक नहीं पड़ा|
मेरी समझ तो यह कहती है की दूसरी पार्टी का होना बी.एस.पी. को नहीं हरा सकता और नहीं जीता सकता है| मुझे लगता है की बी.एस.पी के हार का कारन बी.एस.पी खुद है और उसका का ढीलापन है| बी.एस.पी की निष्क्रियता ही लोगों को बी.एस.पी से दूर ले कर जा रही है| शहरों में तो हालत और भी ख़राब है | पढ़ा लिखा बहुजन और वंचितों अपने आप को बी.एस.पी से दूर रखता है| बी.एस.पी को जरुरी है लोगों तक पहुंचना और लोगों को विश्वास दिलाना की बी.एस.पी उनके साथ है|
लोगों को भी समझा होगा की बी.एस.पी के अलावा उनके पास उनके लिए कोई और विकल्प नही है| कांग्रेस, बीजेपी और आप जैसी पार्टी के तरफ रुख करता बहुजन व वंचित समाज अपने आप का ही नुकसान कर रहा है| धीरे धीरे मुस्लिम लोगों की भागीदारी काम होती जा रही है वैसे जी बहुजनो की भागीदारी भी एक दिन कम हो जाएगी| अभी तो बाबा साहेब जी द्वारा आरक्षित सीटों के बलबूते विधानसभा और संसद में पहुंच जाते है पर वो दिन दूर नहीं जब कैसा भी मुश्किल हो जायेगा| बी.एस.पी अपने पुराने तरीको के साथ नए तरीको को भी अपनाना होगा| जान संपर्क, इंटरनेट और ज्यादा से ज्यादा बहुजनो की भागीदारी बढ़ानी होगी| शहरों, जिला स्तर पर हीरो बनाने होंगे और पहले से बने हीरो लोगों को अपने से जोड़ना होगा| बी.एस.पी पता नहीं क्या बड़े नाम से क्यों परहेज़ करती है| सहभागिता ही एक मूलमंत्र है और बड़ा हो कर बाकि सभी को साथ ले| अंत में मैं यही कहूंगा की विरोधियो की चाल सही पड रही है, वो लोग काम कर रहे और और हम बी.एस.पी वाले काम का इंतज़ार कर रहे है|
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