बाबा साहेब जी की बुनियादी राजनैतिक शिक्षा किसी भी राजनेता के लिए उतनी ही जरुरी है जीतनी खाना पकने के लिए आग| बाबा साहेब जी की बुनियादी राजननीतिक शिक्षा पर हम बाद में बातें करेंगे| आज हम विश्लेष करने की कोशिश करेंगे की उसकी साड़ी मेरी साड़ी से सफ़ेद कैसे या आगे वाली की लाइन छोटी करने के लिए क्या मेरी लाइन को सिर्फ बड़ी होना ही काफी है| हम लोग विचारधारा की लड़ाई लड़ते है, जहा हम अपनी ही एक विचारधारा को जनम दे कर उसके पीछे हो लेते है शायद जो हमारे लिए फायदे मंद हो और फिर राजनीती को भी उसी विचारधारा के माध्यम से देखने की कोशिश करते है| बाबा साहेब जी के अनुयायी होने के नाते हम बाबा साहेब जी के नाम के पीछे, उनकी मूर्ति के पीछे और उनकी नाम की इमारतों के पीछे बड़ी आसानी से हो लेते है| इन दोनों बातों को उदहारण से देखते की कोशिश करते है|
हम गौतम बुद्धा को मानते है और शायद उन्ही के विचारधारा को अनुशरण करने की कोशिश करते है| गौतम बुद्धा ने मूर्ति पूजन मना किया था, फिर भी हम उन्ही की मूर्ति लगते है और पूजा करते है, हर कार्यक्रम के देखा जा सकता है और शायद बुद्धिस्टों के घरों पर भी| हम ने अपनी ही एक विचारधारा बना ली है बुद्धा मूर्ति पूजा सुरु कर ली है| इस विचारधारा की कट्टरता देखिये की अगर उस कार्यक्रम में अगर कोई स्टेज पर मूर्ति पर फूल नहीं चढ़ाता तो कई लोगों को बुरा लग जाता है यही हाल बाबा साहेब जी के मूर्तियों का है जिनके कारन हम लोग बुद्धा को जान पाए है| दोनों ने ढोंग और आडंबर को मानाने से मन किया है फिर भी हम देखते है की कई अम्बेडकराइट बुद्धिस्ट लोगों के घर होली, राखी आदि बनायीं जाती है| क्योकि विचारधारा क्लियर नहीं है, हम लोगों ने अपनी ही एक विचारधारा बना राखी है जिसे हम लोग अपने पड़ोसियों को और अपने परिवार वालों को दिए जा रहे है और फिर वो लोग भी इसमें कुछ अपने हिसाब से मिला कर एक नयी विचारधारा पैदा करेंगे| यही हाल बाबा साहेब जी के विचारधाराओं के साथ हुवा है| आज बाबा साहेब जी को मानाने वाला हर नेता अपनी एक विचारधारा लिए बैठा है और फिर लोगों को भी भ्रमित कर रहा है| मिश्रित विचारधारा का आदमी भटकने के सिवाय कुछ और कर नहीं सकता है|
बेशक राजनीती में अपनी एक लाइन होनी बहुत जरुरी है और उसका बड़ा होना उतना ही जरुरी जितना आगे वाले की लाइन को छोटा होना। दोनों के मायने क्या है, आगे वाले की लाइन को छोटा करना तो हम जानते है क्योकि दूसरों की बुराई देखना और दिखाना हम लोग अच्छी तरह जानते है, राजनीती में इसमें कोई बुराई नहीं है| पर अपनी लाइन को बड़ी कैसे की जाये| बाबा साहेब जी ने कहा था की मैंने बहुजनो व वंचितों के लिए शिक्षा, रोजगार और राजनीती के रस्ते खोल दिए है, इस काम में तो मैं सफल हो गया हु| अब बहुजनो और वंचितों को इन रास्तो तक लाना है| बाबा साहेब जी ने इसकी भी शुरुआत कर दी थी पर इस काम को सफल कह सके और इसकी सफलता देख सके बाबा साहेब जी जिंदगी और हम सभी लोगों को छोड़ कर चले गए| अब बाबा साहेब जी के उत्तराधिकारी होने के नाते सभी नेताओ को, सिर्फ नेताओ को ही क्यों हम सभी लोगों का फर्ज है की इस रस्ते पर हम चले| और अगर हम इन रास्तो पर चल निकालेंगे तो सच मानिये नेताओ के लिए यह लकीर इतनी लम्बी होगी की किसी की हिम्मत नहीं की राजनीतिक सत्ता से दूर रख सके और हम जैसे लोगों के लिए "PAY BACK TO SOCIETY" का ऐसा सही रास्ता होगा की समाज अपने आप प्रगतिशील बनता जायेगा| और वह मार्ग है रिप्रजेंटेशन का| आज के परिवेश की दृष्टि से यह और भी महत्वपूर्ण है की हम अपना रिप्रजेंटेशन कैसे बचाये| जब आपके पास सरकारी स्कूलों की दशा पर ध्यान नहीं दिया जाता, सरकारी कम्पनीज बेचीं जा रही है और राजनीती पैसो का खेल हो गया है| मैंने किसी नेता को नहीं देखा की स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी बहुजनो और वंचितों के लोए बनवाते हुए | रोजगार के लिए कुछ जोरशोर से करते हुए| हमारे लोगों को भी अब स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी खोलने चाहिए, लोगों के लिए रोजगार पैदा करे| नेताओ को चाहिए की इन सभी को लोगों तक पहुचाये, गांव तक ले जाये| मुझे लगता है की रिप्रजेंटेशन पाने वाले लोग भी डरने लगे है की कही ज्यादा लोगों तक सुविधाएं पहुंच जाएगी तो प्रतिस्पर्धा न बढ़ जाये| अंत में यही कहूंगा की नेताओ को बाबा साहेब जी के रास्तो को गांव गांव, गली गली पहुंचना होगा और लोगों को आगे आ कर अभी अभी वंचित समाज को जोड़ना होगा शिक्षा और रोजगार से|
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