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Showing posts from December, 2022

बहुजन व वंचित लोग - अपनी लाइन कैसे बड़ी की जाये?

बाबा साहेब जी की बुनियादी राजनैतिक शिक्षा किसी भी राजनेता के लिए उतनी ही जरुरी है जीतनी खाना पकने के लिए आग| बाबा साहेब जी की बुनियादी राजननीतिक शिक्षा पर हम बाद में बातें करेंगे| आज हम विश्लेष करने की कोशिश करेंगे की उसकी साड़ी मेरी साड़ी से सफ़ेद कैसे या आगे वाली की लाइन छोटी करने के लिए क्या मेरी लाइन को सिर्फ बड़ी होना ही काफी है| हम लोग विचारधारा की लड़ाई लड़ते है, जहा हम अपनी ही एक विचारधारा को जनम दे कर उसके पीछे हो लेते है शायद जो हमारे लिए फायदे मंद हो और फिर राजनीती को भी उसी विचारधारा के माध्यम से देखने की कोशिश करते है| बाबा साहेब जी के अनुयायी होने के नाते हम बाबा साहेब जी के नाम के पीछे, उनकी मूर्ति के पीछे और उनकी नाम की इमारतों के पीछे बड़ी आसानी से हो लेते है| इन दोनों बातों को उदहारण से देखते की कोशिश करते है| हम गौतम बुद्धा को मानते है और शायद उन्ही के विचारधारा को अनुशरण करने की कोशिश करते है| गौतम बुद्धा ने मूर्ति पूजन मना किया था, फिर भी हम उन्ही की मूर्ति लगते है और पूजा करते है, हर कार्यक्रम के देखा जा सकता है और शायद बुद्धिस्टों के घरों पर भी| हम ने अपनी ही ए...

EVM न हूवा भूत हो गया

आज भी मुझे लगता है, जब बीजेपी रिकॉर्ड तोड़ गुजरात में चुनाव जीतती है, सारे विपक्ष लग  जाते है अपनी हार का ठीकरा EVM पर फोड़ने| पार्टियों में हिम्मत नहीं रही की अपनी हार का सही आकलन जनता के सामने रख सके| कांग्रेस, समाजवादी, बसपा और कई समय समय पर EVM  को ढाल बना ही लेते है|  अपने वामन मेश्राम जी ने तो इसे राष्ट्रीय मुद्दा बना रखा है| एक तो अपने अपने आपको साइबर एक्सपर्ट कहता नहीं थकता था और सीटों की वोटिगं क्लेम  करता था| लंदन और अमेरिका जाने कहा कहा से वीडियो आते थे उसके और सईद शुजा अपने आपको बोलता था| बीजेपी भी इससे अछूती नहीं रही जब वो विपक्ष में थी और आडवाणी जी ने बैलट पेपर से वोटिंग करने की मांग करी थी| आम आदमी पार्टी ने तो लाइव EVM हैकिंग सेशन करवाया था| २०१७ में जब बीजेपी उत्तर प्रदेश का विधान स२०२२ में जब फिर से बीजेपी जीती तो इस बार समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश जी ने मोर्चा खोल दिया जब की उनके पार्टी को १२५ सीटें मिली थी, लगभग तीन गुना २०१७ के मुकाबले| समय समय पर EVM की छेड़छाड़ की खबरे आती रहती है और हारने वाला EVM के गलत उपयोग को लेकर जीतने वाले को घेरता रहता...

क्या सही में दूसरी दलित पार्टिया बी.एस.पी का वोट काट कर उसे नुकसान पंहुचा रही है - 2?

 जैसे की मैं पहले बोल चूका हु की अगर समाजवादी पार्टी को छोड़ दिया जाये तो दूसरी बहुजन व वंचितों के पार्टी से बसपा के चुनाव जीत और हार में कुछ फरक नहीं पड़ता दीखता| मैं स्ट्रीम मीडिया आपको सिर्फ यही बताएगी की बसपा निचे गिर रही है| बसपा अभी भी कई सीटें निकल सकती है, संसदीय चुनाव २०१९ को देखे तो १० सीट पर जीतते हुए २७ सीटों पर दूसरे स्थान पर रही है. एक सीट पर तो करीब २०० वोटों से हारी है| यह सब बसपा के स्थानीय निष्क्रियता के कारन ही जान पड़ता है और निष्क्रियता विधानसभा चुनाव २०२२ आते आते इतनी बढ़ गयी थी की १ ही सीट जीत पायी| बसपा की सर्वजन हिताये सर्वजन सुखाये वाली सोशल इंजीनियरिंग चल नहीं पायी| बसपा ने अपना सोशल मीडिया नहीं खड़ा किया, अपने लोगों को मीडिया में प्रोत्साहन नहीं दिया (इस बार प्रयास किया था और वो चुनाव तक ही सिमित दिखा), जान संपर्क नहीं दीखता, कुछ गिने चुने कार्यक्रम के अलावा कोई कार्यक्रम नहीं सुरु किये जिससे लोगों तक बाद पहुचायी जा सके| लोकल लोग कांशीराम जी का और मायावती जी का जन्मदिन बनाने के लिए ज्यादा उत्साहित दिखते है| सोशल मीडिया और मीडिया एक ऐसा माधयम है जो लोगों से सी...

क्या सही में दूसरी दलित पार्टिया बी.एस.पी का वोट काट कर उसे नुकसान पंहुचा रही है?

 कई दिनों से इस चिंता में परेशांन था की आखिर बहुजन और वंचितों की राजनीती कहा जा रही है| कई महान लोगों के द्वारा किया परिश्रम व बलिदान क्या अब ख़तम हो जायेगा| अभी फ़िलहाल के चुनाव नतीजों ने तो और भी परेशांन कर दिया| मुझे साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था या यह कहूंगा की समझ आने लगा की २०२४ में बहुजनो की राजनीती कहा जाएगी| आंदलनों, भारत बंद, कुछ जन सभाये और छोटे मोटे इधर उधर घेराव से कुछ नहीं हो रहा है| बहुजनो और वंचितों का प्रतिनिधित्व नहीं पहुंच पा रहा है सत्ता के गलियारे तक| हमारे कई नेता लोग कभी समाजवादी पार्टी, कभी एन. सी. पी, कभी कांग्रेस के साथ और तो कभी बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ते दिखे है पर नतीजा क्या? समाज को क्या मिला या -बाबा साहेब के रस्ते पर चले वे सब|      मुझे बी.एस.पी के अलावा अभी भी कोई पार्टी नहीं दिखती जो बहुजनो और वंचितों की आवाज़ बन सके| कोई और पार्टी न विधानसभा और ना ही कोई संसद पहुंचने में कामयाब रही है| मैं पिछले कुछ चुनाव के नतीजे देख रहा था और पाया की दूसरी अन्य दलित पार्टी के वजह से बी.एस.पी को कितना नुकसान हुवा और क्या यही एक कारन वोट डिवीज़न ही है ज...

बहुजनों का घटता मजबूत राजनैतिक प्रतिनिधित्व

 बाबा साहेब जी खुद एक पूरी पूरी पाठशाला है और कही और जाने की जरुरत नहीं है हम बहुजन लोगों को ये समझने के लिए की आधुनिक भारत को एक सही और मजबूत लोकतांत्रिक देश बनाये रखने के लिए एक विपक्ष का होना और सभी का प्रतिनिधित्व बहुत जरुरी है| बाबा साहेब जी को तो समय नहीं मिला एक सक्षम और मजबूत राजनैतिक विपक्ष देने का आर. पी. आई. के रूप में उन्होंने सोच बनायीं थी पर वे खुद पूरी नहीं कर सके| उनके कदमों पर चल कर अगर सही में राजनैतिक सक्षम और मजबूत बहुजनों का विपक्ष देने की कोशिश की है तो वो है कांशीराम जी| बाबा साहेब जी ने कहा था की राजनीती एक ऐसी सत्ता की चाबी है जिससे आप हर मुश्किल ताला खोल सकते हो, वो हम लोगों को सत्ता पर बैठा देखना चाहते थे| और कांशीराम जी ने काफी हद तक हम बहुजनों को वो ताकत दे दी थी| अगर अब उत्तर भारत और मध्य भारत की बात करू तो कोई भी ऐसा नेता नहीं दीखता जो बाबा साहेब का सपने के आस पास भी हो| बाबा साहेब ने हमें सत्ता की चाबी थामने को कहा और हमारे कई नेता दूसरों को सत्ता हासिल करने में सहयोग देने की होड़ में लगे है| खुद के दम पर एक सांसद और एक विधायक नहीं दे पाते समाज को और ...

दिल्ली २०२२ MCD चुनाव परिणाम - कहा है बहुजनो का प्रतिनिधित्व

 लीजिये एक और चुनाव निकल गया, बात फिर कांग्रेस, बीजेपी, आप की ही हो रही है| मैं बात टीवी और अखबारों की नहीं कर रहा हु मैं बात कर रहा हु जितने की (https://economictimes.indiatimes.com/news/elections/delhi-mcd-election-2022-results-news-bjp-congress-aap-live-updates-7-december-2022/liveblog/96042384.cms)| कांग्रेस ने इतनी सीटें जीती, आप ने इतनी और बीजेपी ने इतनी| ऐसा नहीं की इन पार्टियों से बहुजनो को जीत नहीं मिलती| आरक्षित सीटों पर जरूर मिलती है| पर क्या सही मायने में ऐसे लोग बहुजनो का प्रतिनित्व कर पाते है| इसके लिए थोडा इतिहास देखते है और बाबा साहेब जी से अच्छा कोई नहीं होगा सीख देने वाला| पहले तो बाबा साहेब जी जैसे ज्ञाता ने खुद प्रयास किया को कांग्रेस के साथ मिल कर काम किया जाये पर समय रहते उन्हें पता चल गया और उन्होंने आर.पी.आई पार्टी बनाने की सोची | आखिर क्यों? बाबा साहेब जी भी कांग्रेस की सीट पर चुनाव लड़ सकते थे और संसद बड़े आराम से जा सकते थे| पर वे अगल उनके विरोध में खड़े हुए| बाबा साहेब जी जानते थे की कांग्रेस के साथ जा कर वे वो कल्ल्याणकारी काम सब नहीं पाएंगे जो उन्होंने बह...

बाबा साहेब जी की याद में - ६ दिसंबर विशेष - अंतिम ५ दिन

१ दिसंबर १९५६,  प्रातः ७:३० बजे थोड़ा जल्दी उठ कर बाबा साहेब ने  मथुरा रोड पर लगी प्रदर्शनी देखने जाने की इच्छा प्रकट कर सभी को आश्चर्य कर दिया, थोड़े तरोताजा और प्रफुल्लित लग रहे थी| इन दिनों बाबा साहेब अपनी किताब "बुद्धा एंड कार्ल मार्क" को पूरा करने में ही लगे रहते थे और बहार बहुत कम ही निकलते थे| करीब १:३० बजे दोपहर को प्रदर्शनी के गेट पर पहुंचे| प्रदर्शनी के एक अधिकारी ने उनकी अगवाही की और प्रदर्शनी दिखने ले गया| उनको लोगों ने चारो और से घेर लिया था| बाबा साहेब प्रदर्शनी देख कर बहुत प्रशन्न और आश्चय हुए, भगवान बुद्धा की  अलग अलग मुद्राओं में मुर्तिया कई देशों से प्रदर्शित थी| धीरे धीरे प्रदर्शनी देखने के बाद जब बाबा साहेब वापस गेट पर आये, पीछे मुड़े, एक कोने से दूसरे कोने तक नज़र दौड़ाई और बोले - "मेरे बुद्ध महान थे, मेरे बुद्ध महान थे" | सोहनलाल शास्त्री पहले से भी गेट पर मौजूद थे, बाबा साहेब के पास आये और बड़ी ही  जिज्ञासापूर्ण पूछा, इतने विभिन्न विभिन्न मुद्राओं और चेहरे में भगवान बुद्ध को दर्शाया गया है, भगवान बुद्धा की असली शक्ल कैसी होगी बड़ा भ्रम है| बाबा साहेब...

किस राह जाती हुयी बहुजन व वंचितों की राजनीति

मैं इतना ही कहूंगा कि आज की स्थिति बहुजनों और दलितों के लिए बिल्कुल भी अनुकूल नहीं है। न तो कोई सामाजिक संगठन और न ही कोई राजनीतिक संगठन बहुजनों और वंचितों की आवाज मजबूती से उठाता नजर आ रहा है। लोग पहले से ज्यादा जागरूक हुए हैं, लोग पहले से ज्यादा सजग हुए हैं, वे समाज के लिए अपनी भूमिका निभाने को तैयार हैं और कोई हिस्सों में साझेदारी भी बढ़ी है| कांशीराम जी ने कहा था की हमे इतनी ताकत बनानी होगी की अगर हम सरकार न भी बना सके पर हमारे बिना हमारे सरकार चलनी नहीं चाहिए | आज आज़ादी के ७५ वर्ष में हम है पर हमारे लोग और हमारे संगठन आज भी वैसी ताकत नहीं बना पाए| आज भी हम सत्ता के गलियारों में झाकते है की कोई हमे सत्ता की भागीदारी हमारे झोली में डाल दे ठीक वैसे ही जैसे कोई मंदिर के सीढ़ियों पर इंतज़ार करता है| सामाजिक संगठनो की तो और हालत और भी गंभीर है इसीलिए उनकी बात नहीं करूँगा| राजनैतिक संगठनों में भी कुछ ज्यादा बदलाव नज़र नहीं आता| वामन मेश्राम की बात करू तो शरद पवार (https://www.youtube.com/watch?v=qVIIqR_O-BA) को खुले आम सपोर्ट करने की बात करते है| वही प्रकाश आंबेडकर कभी एकनाथ शिंदे (https://...