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Showing posts from 2024

मायावती जी की छोटे राज्यों की मांग और एक राष्ट्र एक चुनाव

2021 में मायावती जी ने उत्तर प्रदेश को 4 भागों में विभाजित करने का प्रस्ताव रखा था। जिसमें उन्होंने पूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश और पश्चिम प्रदेश का प्रस्ताव रखा था। एक राष्ट्र, एक चुनाव और छोटे राज्यों के निर्माण की अवधारणा शासन, प्रशासन और राजनीतिक स्थिरता के लिए उनके निहितार्थों में एक दूसरे से जुड़ी हुई है। यह मायावती के छोटे राज्यों के प्रस्ताव को अब और भी अधिक वैध बनाता है। एक राष्ट्र, एक चुनाव: यह विचार पूरे भारत में लोकसभा (संसद) और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव करता है। इसका लक्ष्य चुनावों की आवृत्ति को कम करना, शासन में व्यवधानों को कम करना और चुनाव संबंधी खर्चों में कटौती करना है। छोटे राज्य: शासन पर प्रभाव छोटे राज्य स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके प्रशासनिक दक्षता और शासन में सुधार कर सकते हैं। स्थिरता के साथ वे उन क्षेत्रों के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ाते हैं जो अन्यथा उपेक्षित महसूस कर सकते हैं। सुव्यवस्थित शासन वाले छोटे राज्य चुनाव रसद का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं। छोटे राज्यों में राजनीतिक स्थिरता अधिक पाई जाती है जिससे लोगस...

स्वर्ग और संसद

मैं एक आम भारतीय नागरिक के नाते, जो लोग संविधान की सपथ ले कर (विधि द्वारा स्थापित भारत का संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखेंगे और अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करेंगे तथा भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करेंगे।) एक सांविधानिक पद पर बैठे है, उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 51H का उल्लंघन कभी नहीं करना चाहिए| मेरा यह लेख उन सभी से जवाब चाहता है जो सविधान का अध्यन करते हो या सविधान को समझते हो| भारतीय संविधान, जो दुनिया के सबसे विस्तृत, समतावादी, वैज्ञानिक दृष्टिकोण देने वाला और समावेशी संविधानों में से एक है, प्रत्येक नागरिक के अधिकारों की सुरक्षा और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस तरह से सांविधानिक पद पर बैठे लोगों को और भी धयानपूर्वक इसका कड़ाई से पालन करना चाहिए| इसमें कुछ विशेष अनुच्छेद जैसे अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 51H, हमारे लोकतंत्र की नींव को मजबूत करते हैं। मैं समझाता हू इन अनुच्छेदों का उपयोग संसद में किसी भी अवास...

अंबेडकर और मानवाधिकार - १० दिसंबर विश्व मानवाधिकार दिवस

 १० दिसंबर विश्व मानवाधिकार दिवस और आंबेडकर का जिक्र न करे ऐसा हो ही नहीं सकता| डॉ. बी.आर. अंबेडकर, जिन्हें हम  "बाबासाहेब" के नाम से भी जानते है, के लिए मानवाधिकार सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से उत्पीड़ित और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए सामाजिक न्याय, समानता और सम्मान प्राप्त करने के लिए मौलिक थे। मानवाधिकारों के बारे में उनकी समझ स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों में गहराई से निहित थी, जिसे उन्होंने न्यायपूर्ण और समावेशी समाज के निर्माण के लिए आवश्यक बताया। मैंने अंबेडकर जी मानवाधिकारों को किस तरह से देखते थे, अपनी समझ के हिसाब से कुछ प्रमुख पहलू नीचे प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हु: 1. समानता और सामाजिक न्याय बाबासाहेब जी ने इस विचार का समर्थन किया कि जाति, धर्म, लिंग या वर्ग की परवाह किए बिना सभी व्यक्ति समान हैं। उनका मानना ​​था कि जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता मानवीय गरिमा और समानता के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। उन्होंने दलितों और अन्य हाशिए पर पड़े समुदायों के अधिकारों की वकालत करते हुए जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए अथक प्रयास किया। 2. गरिमा और आत...

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (Prevention of Atrocities) अधिनियम के हालिया आंकड़ों पर एक नजर

  यह घटना 28 अगस्त 2014 को हुई थी। और जिसे मीडिया ऐतिहासिक फैसला बता रहा है, उसमें कर्नाटक की एक अदालत ने राज्य के कोप्पल जिले में दर्ज अत्याचार के एक मामले में 98 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। न्यायाधीश सी चंद्रशेखर ने मामले में फैसला सुनाया। मुझे लगता है कि यह ऐतिहासिक है क्योंकि सूत्रों के अनुसार, राज्य के इतिहास में यह पहला मामला है जब अत्याचार के एक मामले में इतनी बड़ी संख्या में आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। युवजन श्रमिक रायथु कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) के एक विधायक को आंध्र प्रदेश में एक दलित युवक पर हमला करने के लिए 18 महीने जेल की सजा सुनाई गई थी। यह हमला जाति-आधारित भेदभाव से उपजा था। ये दोनों मामले चरम पर हैं, अच्छी बात है कि गति में सुधार हुआ है लेकिन यह जानना महत्वपूर्ण है कि उचित तथ्य और निर्णय हुआ था और उस पर विचार किया गया था। राज्य सभा अतारांकित प्रश्न संख्या 301, जिसका उत्तर 24 जुलाई, 2024 को दिया जाएगा (राज्य सभा यू.एस. पी.क्यू. संख्या 301 दिनांक 24.07.2024 के लिए)। नवीनतम प्रकाशित रिपोर्ट वर्ष 2022 से संबंधित है। रिपोर्ट के अनुसार, अ...

भाषा के साथ हमारी संस्कृति व इतिहास भी विलुप्ति पर

  पिछले हफ़्ते की बात है जब मैं अपने पुश्तैनी गाँव गया था। बहुत सालों बाद अपनी दादी से मिला और उनके मुँह से कोशारी सुनना बहुत मज़ेदार था। हमारे दादा, दादी, पिताजी, चाचा और उस समय के बहुत से लोग कोशारी बोलते थे। अब मैं देख रहा हूँ या यूँ कहूँ कि अब मैं ध्यान दे रहा हूँ, आजकल के लोग कोशरी बोलना भूल गए हैं, मैं भी उसी श्रेणी में आता हूँ, मैं कोशरी नहीं बोलता, मुझे बुरा लगा। दिल्ली वापस आने के बाद, मैंने इंटरनेट पर खोजा कि भारत की कितनी भाषाएँ व बोलिया विलुप्त हो गई हैं| यह चिंताजनक है कि भारत में 197 भाषाएँ संकटग्रस्त हैं, जिनमें से 81 असुरक्षित हैं, 63 संकटग्रस्त हैं, 6 गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं, 42 गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं और 6 पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं। और बोलियों का तो हिसाब भी कही ठीक से नहीं मिलता|  (संदर्भ: https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/extinct-endangered-vulnerable-tale-of-indias-linguistic-heritage/historic-destruction/slideshow/70601865.cms और https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_endangered_languages_in_India) दादी जी से आगे बातें...

महाराष्ट्र-२४ चुनाव और बहुजनो के लिए उसके सबक

जब दूसरी तरफ असीमित धन, प्रचुर संसाधन और पूरी व्यवस्था आपके खिलाफ हो, तो उनके विरुद्ध खड़े होना निश्चित रूप से आसान नहीं होता। यह बात महाराष्ट्र चुनाव के बाद और भी स्पष्ट हो गई है। कांग्रेस, एनसीपी, और शिवसेना जैसी बड़ी राजनीतिक पार्टियां भी मुँह के बल गिर गईं। जब सत्ता और व्यवस्था का झुकाव किसी एक पक्ष की ओर हो, तो प्रतिद्वंद्वी दलों के लिए परिस्थितियाँ और भी कठिन हो जाती हैं। यह चुनौती और बढ़ जाती है जब आप उन दबे-कुचले, वंचित, और बहिष्कृत लोगों के लिए लड़ाई लड़ रहे होते हैं, जिन्हें समाज में पहले ही पीछे धकेल दिया गया है। ऐसे में भारतीय समाज में दलित राजनीति की चुनौतियों और संघर्षों का मुद्दा सामने आता है। मायावती जी के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने इन वर्गों के लिए अपनी आवाज़ बुलंद की है। लेकिन अक्सर आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। अब वो लोग जो #BSP पर विचारधारा से भटकने का आरोप लगाते थे, उन्हें भी यह स्वीकार करना होगा कि संघर्ष का मैदान और उसकी कठिनाइयाँ क्या होती हैं। आलोचकों की वास्तविकता राजनीति में आलोचना करना आसान है, लेकिन जमीनी हकीकत को समझना और बदलाव के लिए प्रयास...

दलित इतिहास में 12 नवंबर

12 नवंबर दलित इतिहास में महत्वपूर्ण महत्व रखता है क्योंकि यह प्रथम गोलमेज सम्मेलन की शुरुआत का प्रतीक है, जो 12 नवंबर, 1930 से 13 जनवरी, 1931 तक चला था। यह सम्मेलन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था, जहाँ एक प्रमुख भारतीय नेता डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने दलित वर्गों, जिन्हें अछूत भी कहा जाता है, के लिए अलग निर्वाचिका की माँग की थी। डॉ. अंबेडकर की माँग एक अधिक समतापूर्ण समाज के लिए उनके दृष्टिकोण दर्शाती थी, जहाँ हाशिए पर पड़े समुदायों को राजनीतिक प्रक्रिया में आवाज़ मिल सकती थी। उनका मानना ​​था कि अलग निर्वाचिका दलित वर्गों को अपने प्रतिनिधि चुनने के लिए एक मंच प्रदान करेगी, जिससे सरकार में उनकी भागीदारी सुनिश्चित होगी। हालाँकि सम्मेलन अंततः अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में विफल रहा, लेकिन इसने दलित अधिकारों और सशक्तिकरण के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। इसे कई लोग रूढिवादीओ पर एक सशक्त प्रहार भी मानते है|  सामाजिक न्याय और समानता के लिए डॉ. अंबेडकर की अटूट प्रतिबद्धता दलित कार्यकर्ताओं और नेताओं की पीढ़ियों को प्रेरित करती रही है।  प्रमुख प्रतिभागी और चर्च...

आरक्षण में उप-वर्गीकरण, सस्ता रास्ता

भारत में आरक्षण नीति एक महत्वपूर्ण और हमेशा से ही विवादास्पद रही है, जिसे समझना और उसका विश्लेषण करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। यह नीति भारत के संविधान के तहत उन लोगों को सामाजिक (नौकरी), शैक्षणिक और राजनीतिक रूप से सहायता प्रदान करने के लिए बनाई गई है जो ऐतिहासिक रूप से समाज के हाशिये पर रहे हैं। आरक्षण नीति के तहत, विभिन्न सामाजिक समूहों को सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और अन्य सुविधाओं में आरक्षण प्रदान किया जाता है। आरक्षण नीति को मैं हरसमय से ही प्रतिनिधित्य की नीति  मानता आया हु| भारतीय इतिहास में जातियों के आधार पर कई सालों से कुछ जातियों पर भेदभाव (भेदभाव भी  छोटा शब्द होगा उस भेदभाव को परिभाषित करने के लिए) होता रहा है| इस लेख में हम भारत की आरक्षण नीति के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे, ख़ासकर उप-वर्गीकरण। 1. आरक्षण नीति का इतिहास आरक्षण नीति की शुरुआत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय से हुई थी। ब्रिटिश शासन के दौरान, समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए कई प्रयास किए गए थे। 1909 में मिंटो-मोर्ले सुधारों के तहत, मुस्लिम समुदाय को राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण...

बहुजन समाज पार्टी की प्रासंगिकता और जरुरत

भारतीय राजनीती में  बहुजन समाज पार्टी का कैसा भी प्रदर्शन रहा हो पर हर आने वाले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का एक महत्त्व होता ही है और आगे भी रहेगा। २०२४ का चुनाव भी इससे अछूता नहीं है व बहुजन समाज पार्टी की नेता, मायावती जी,  एक प्रमुख राजनीतिक हस्ती रहती हैं।इसके कई महत्वपूर्ण कारन दिखाई देते है| दलितों, अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) और अल्पसंख्यकों को चिहिए की बहुजन समाज पार्टी को जितना हो सके मज़बूत बनाये ताकि वो मज़बूत हो सके|  पहला वोट बैंक: उत्तर प्रदेश ही नहीं भारतवर्ष में दलित वोट बैंक पर मायावती का अच्छा खासा प्रभाव है. दलित एक महत्वपूर्ण मतदान समूह हैं, और उनका समर्थन चुनावी नतीजों को आकार देने में महत्वपूर्ण हो सकता है|  सामाजिक गठबंधन: मायावती जी, कांशीराम जी के प्रायाशो की उत्तराधिकारी है जो की दलितों, अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) और अल्पसंख्यकों को एक साथ लाकर एक सामाजिक गठबंधन बनाने के प्रयासों के लिए जाने जाते है। और अगर लीडिंग पार्टीज इसका धयान न रखे तो यह चुनाव को कही भी मोड़ दे सकती है और एक निर्णायक कारक हो सकती है। क्षेत्रीय प्रभाव: उत्तर प्रदेश, मध्य ...

I.N.D.I.A गठबंधन और मायावती

 फिछले कुछ महीनों से बड़े जोरो शोरो से मीडिया में खबर आयी थी की मायावती जी या कहे BSP I.N.D.I.A गठबंधन में आणि वाली है, कई लोगों से बातें चल रही है और मीडिया के लोगों ने तो इसे मायावती जी का BJ party को मात देने की तुरुप की चाल बताई। फिर एक खबर आती है की मायावती जी के किसी नजदीकी पर ED की नज़र है| जिससे चित भी मेरी और पट भी मेरी वाली बात लगती है, कांग्रेस को कहने में आएगा की देखिये BJ party को हारने के लिए हमने तो शुरुआत की और I.N.D.I.A   गठबंधन को फायदा भी मिलता और अगर BSP आती नहीं तो कहते की ED से डर कर BSP नहीं आयी|  सिर्फ तीन पार्टियों की बातें करें BJP, कांग्रेस और BSP, सब का अपना अपना वोट बैंक है और कांग्रेस जो की बीजेपी को सीधे हारते हुए नहीं दिखती, BSP के वोट बैंक पर नज़र है| मेरी नज़र में कांग्रेस अपनी लाचारी और नाकामी छिपाने के लिए सब कर रही है| कांग्रेस BJP की तोड़ नहीं ला पा रही है, देश की जनता को अपने विचारधारा और अपने पार्टी से जोड़ने में नाकाम है| मैंने अभी कुछ दिनों में ही पांच छ: मैसेज देखे जहा चिंता जताई गयी की अब BJP को कैसे हराया जाये या भी BSP तो ख़तम य...