जब दूसरी तरफ असीमित धन, प्रचुर संसाधन और पूरी व्यवस्था आपके खिलाफ हो, तो उनके विरुद्ध खड़े होना निश्चित रूप से आसान नहीं होता। यह बात महाराष्ट्र चुनाव के बाद और भी स्पष्ट हो गई है। कांग्रेस, एनसीपी, और शिवसेना जैसी बड़ी राजनीतिक पार्टियां भी मुँह के बल गिर गईं। जब सत्ता और व्यवस्था का झुकाव किसी एक पक्ष की ओर हो, तो प्रतिद्वंद्वी दलों के लिए परिस्थितियाँ और भी कठिन हो जाती हैं।
यह चुनौती और बढ़ जाती है जब आप उन दबे-कुचले, वंचित, और बहिष्कृत लोगों के लिए लड़ाई लड़ रहे होते हैं, जिन्हें समाज में पहले ही पीछे धकेल दिया गया है। ऐसे में भारतीय समाज में दलित राजनीति की चुनौतियों और संघर्षों का मुद्दा सामने आता है। मायावती जी के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने इन वर्गों के लिए अपनी आवाज़ बुलंद की है। लेकिन अक्सर आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। अब वो लोग जो #BSP पर विचारधारा से भटकने का आरोप लगाते थे, उन्हें भी यह स्वीकार करना होगा कि संघर्ष का मैदान और उसकी कठिनाइयाँ क्या होती हैं।
आलोचकों की वास्तविकता
राजनीति में आलोचना करना आसान है, लेकिन जमीनी हकीकत को समझना और बदलाव के लिए प्रयास करना कठिन। वामन मेश्राम, प्रकाश आंबेडकर, विजय मानकर, और अब राजरतन आंबेडकर जैसे लोग मायावती जी और उनकी पार्टी के ऊपर सवाल खड़े करते रहे हैं। लेकिन जब बात खुद की राजनीतिक ताकत दिखाने की आई, तो ये लोग भी कहीं न कहीं असफल होते नजर आए। ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है कि दूसरों की गलतियां निकालना और खुद कोई ठोस परिणाम देना दो अलग-अलग बातें हैं।
बहुजन लोग जिनका बहुजनों की नीतियों और विचारधारा से कोई लेना देना नहीं है, और बहाने के नाम पर कहते हैं कि वोट क्यों बर्बाद किया जाए, या फिर #बसपा यहाँ मजबूत नहीं है। उनके लिए भी सवाल यह है कि कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना द्वारा लागू की गई कितनी नीतियां बहुजनों के लिए हैं और क्या उन्होंने बहुजनों के लिए सुरक्षित माहौल प्रदान किया है। अगर लोग कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना का समर्थन करते हैं तो हालत आज़ादी के ७५ साल बाद भी क्यों नहीं बदली|
मायावती जी का नेतृत्व
मायावती जी का राजनीतिक जीवन इस बात का उदाहरण है कि कैसे सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों में भी संघर्ष किया जा सकता है। उन्होंने कभी किसी के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग नहीं किया और न ही किसी को नीचा दिखाने की कोशिश की। यह उनके व्यक्तित्व और नेतृत्व की विशेषता है। दूसरी ओर, वे लोग जो चुनाव में एक सीट पर 1,000 वोट भी नहीं ला सकते, दूसरों को ज्ञान देने में लगे रहते हैं।
बाबासाहेब की विचारधारा और उसके विरोधाभास
बाबासाहेब अंबेडकर ने हमेशा समाज को जोड़ने और एकता का संदेश दिया। उन्होंने समाज के हर वर्ग के उत्थान के लिए काम किया। लेकिन विडंबना यह है कि उनके उपासक कहे जाने वाले कुछ लोग समाज को जोड़ने के बजाय, उसे तोड़ने और दूसरों को नीचे गिराने में व्यस्त हैं। वे मायावती जी जैसे नेताओं की आलोचना में अपना समय व्यतीत करते हैं, जिन्होंने वास्तविकता में दलित और पिछड़े वर्गों के लिए कुछ ठोस काम किया है।
राजनीतिक परिदृश्य और दलित राजनीति की चुनौतियाँ
महाराष्ट्र चुनाव में BSP को भले ही आशातीत सफलता नहीं मिली हो, लेकिन यह सवाल उठाना जरूरी है कि दलित राजनीति को कमजोर करने के पीछे क्या कारण हैं। क्या यह केवल बाहरी ताकतों की साजिश है, या फिर आंतरिक मतभेद और एकता की कमी भी जिम्मेदार है? यह समझना जरूरी है कि जब एक नेता या एक पार्टी समाज के दबे-कुचले वर्गों के लिए काम करती है, तो उसे हर तरफ से विरोध का सामना करना पड़ता है।
मायावती जी का योगदान
मायावती जी ने हमेशा एक सकारात्मक राजनीति की मिसाल पेश की है। उन्होंने समाज के वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया है। उनके नेतृत्व में #BSP ने कई बार यह दिखाया है कि दलित राजनीति को भी मुख्यधारा में लाया जा सकता है। उनके प्रयासों के बावजूद, कुछ तथाकथित दलित नेता हमेशा उनकी आलोचना में लगे रहते हैं।
आलोचकों के लिए सबक
यह समय है कि आलोचक भी आत्मनिरीक्षण करें। उन्हें यह समझना चाहिए कि दूसरों की गलतियों को उजागर करना और अपनी जिम्मेदारियों से भागना सही नहीं है। मायावती जी जैसी नेता के काम को कमजोर करने के बजाय, उनके हाथ मजबूत करने चाहिए। अगर हम वास्तव में बाबासाहेब अंबेडकर की विचारधारा का सम्मान करते हैं, तो हमें समाज को जोड़ने और एकता को बढ़ावा देने पर ध्यान देना चाहिए।
लोग जो कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना का समर्थन करते हैं उन्हें समझा होगा की बिना पॉलिसीस पर काम किये उद्धार नहीं होगा|
निष्कर्ष
मायावती जी और #BSP जैसी पार्टियों के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनके संघर्ष, उनके नेतृत्व, और उनके प्रयासों को सम्मान देना चाहिए। यह समय है कि समाज के दबे-कुचले वर्गों के उत्थान के लिए एकजुट होकर काम किया जाए। आलोचना करना आसान है, लेकिन बदलाव लाने के लिए संघर्ष और त्याग की जरूरत होती है। हमें यह याद रखना चाहिए कि अगर हम खुद कुछ नहीं कर सकते, तो कम से कम जो लोग कर रहे हैं, ४ बार कर के दिखाया है, उन्हें समर्थन और प्रोत्साहन देना चाहिए। यही बाबासाहेब की सच्ची विचारधारा है, और यही हमारे समाज को सही दिशा में ले जाने का रास्ता है।
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