कांग्रेस से बीजेपी और बीजेपी से कांग्रेस सत्ता परिवर्तन में बहुजनों की बात करने वाला कोई नहीं है और ना ही हम व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीद कर सकते है| हमारे महापुरुषों ने जो व्यवस्था परिवर्तन और प्रतिनिधित्व की उम्मीद की थी क्या वो हो पायेगी? मेरा ये पक्का विश्वास है की बहुजनों की तीसरी राजनैतिक शक्ति होनी चाहिए जो काम से काम किंग मेकर की भूमिका में हर समय रहे| इन दोनों पार्टियों के ऊपर एक प्रेशर जरूर होना चाहिए ताकि ये पार्टिया न तो हमारे हक़ का पैसा इधर उधर कर सके और न ही हमारा कोई सांविधानिक हक़ मरी हो| बहुजनों को समझाना होगा की चाहे राष्ट्रपति मुरुम जी हो या कांग्रेस प्रेजिडेंट खड़गे जी कांग्रेस और बीजेपी कभी भी प्रतिनिधित्व की बातें नहीं करेंगी और नहीं करने देंगी| क्या पहले मुरुम जी और खड़गे जी इन पार्टियों में नहीं थे?
कर्नाटका की करीब १७% सेडुअल कास्ट जनसँख्या है और मुझे ज्यादातर कांग्रेस की तरफ जाता दिखा और मुस्लिम वोट्स का भी यही हाल है| कर्नाटक में कोई बहुजन राजनैतिक पार्टी का अस्तित्व नहीं दिखा इसीलिए शायद आप लोग कहेंगे की यह उदहारण गलत है पर यु.पी की बात करे जहा अस्तित्व भी है और दम भी, फिर भी तो लोगों ने बीजेपी को चुना| बात किसी भी राज्य की नहीं बल्कि बहुजनों के लिए लड़ने वाले तीसरे फ्रंट की है जो की नदारत दिखता है| राजस्तान, छत्तीसगड़, मध्यप्रदेश किसी भी राज्य में देख लीजिये सत्ता परिवर्तन कहा से कहा हो रहा है| पंजाब और दिल्ली की बात करें तो भी व्यवस्था परिवर्तन देने वाली पार्टी नहीं है AAP| आखिर कब तक एक बहुजनों की मजबूत पार्टी उभर कर नहीं आती| जीतनी भी बहुजनों की पार्टिया है पुरानी आर.पी.आई से ले कर अभी की आ.यस.पी, किसी ने भी बहुजनों का पूरा विश्वाश नहीं जीत पाया|
बी.यस.पी की सरकार जरूर बनी है यु.पी में पर उसके बाद क्या हुआ बहुजन राजनैतिक पार्टियॉ का किसी से छुपा नहीं है| बाबा साहेब की विचारधारा ना राइट, ना सेंटर और ना ही लेफ्ट से मिलती है और यही पर पार्टिया विचारधारा को लोगों तक ले जाने भी असफल रही| आज भी मेरे कई अनुसूचित जाती व अनुसुचित जनजाति के दोस्त बी.यस.पी को सेंटर का विकल्प समझते है| बीजेपी नहीं तो कांग्रेस या बी.यस.पी और कांग्रेस और बी.यस.पी में अंतर पता ना होने के कारण लोग कांग्रेस के तरफ मूड जाते है|
दूसरा कारण है भारतीय राजनीती, धार्मिक परिवेश में भी देखी जाती है और आज भी कई अनुसूचित जाती और जनजातियां हिन्दू धर्म से जुडी हुयी है जिसके कारण ये लोगो खुल कर जातिनिरपेक्षता को नहीं देख पाते| सामानता की बातें और उनके हक़ की बातें आज भी उन्हें भगवान और किस्मत की बातें लगाती है और सीधे सादे लोग धर्म के बहकावे में आ जाते है| विचारधारा की लड़ाई में कोई भी पार्टी निस्वार्थता और कड़ी मेहनत की दिशा में काम करती नहीं दिखती| अगर बहुजनो की एक राष्ट्रव्यापी राजनैतिक ताकत बनानी होगी तो पार्टी को निस्वार्थता और कड़ी मेहनत करनी होगी|
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