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तिलका मांझी - वीरगति किस के लिए

तिलका मांझी एक पहाड़िया (पहाड़ी लोग) समुदाय में से आप कह सकते है की पहले आदिवासी नेता थे। हमारे देश के इतिहासकारो ने आदिवासियों व बहुजनों का इतिहास कभी ठीक ढंग से लिखा नहीं| शायद इसलिए की लिखना सिर्फ एक ऊंची जाती तक ही सिमित था और आदिवासियों और बहुजनों को उस समय लिखना आता नहीं था | जो कुछ भी इतिहास मिलता है उससे पता चलता है की 1784 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था तिलका मांझी ने। अपने लोगों को खाने व संसाधनों की कमी को देखते हुए उन्होंने आंदोलन छेद दिया था| कुछ समय बाद उन्होंने एक आदिवासियों को एक सशस्त्र समूह बनाया और उन्हें संगठित किया। 1771 से 1784 तक उन्होंने कभी आत्मसमर्पण नहीं किया। (https://thewire.in/history/santal-hul-revolution) मांझी ने अपने लोगों के लिए लड़ाई लड़ी, उनके शब्दों ने कई आदिवासी आंदोलनों को जन्म दिया। 1774 का हल्बा विद्रोह, 1818 का भील विद्रोह और 1831 का कोल विद्रोह। 1855-56 की संथाल हुल (क्रांति) संथाल आदिवासियों और बहुजनो के किसानों द्वारा शोषक उच्च जाति के जमींदारों (जमींदारों), महाजनों के खिलाफ लड़ी गई एक ऐसी ऐतिहासिक क्रांति थी। (साहूकार), दरोगा (पुलिस), व्यापारी, और तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेंसी में ईस्ट इंडिया कंपनी के शाही बल। संथाल 1790-1810 के बीच पड़ोसी बीरभूम एस्टेट के जमींदारों द्वारा खदेड़े जाने के बाद वर्तमान संथाल परगना में बस गए। जो पहाड़ी इलाकों में रहने वाले पहाड़ियाओं के लिए बनाई गई औपनिवेशिक सरकार की एक खास संपत्ति थी। खेती के लिए घने जंगलों को साफ करने के लिए संथालों का स्वागत किया गया और किराए पर तलहटी में बसने के लिए जमीन दी गई। वे इस बात पर जोर देने के लिए आए कि चूंकि वे भूमि को साफ करने और उस पर निवास करने वाले पहले व्यक्ति थे, इसलिए वे इसके सही भण्डारी थे। बाद में कर बढ़ाना और कई चीजे सही| सिद्धो और कान्हू मुरुम जैसे आंदोलनकारी भी रहे | जिनको सीबू सोरेन ने याद भी किया| औपनिवेशिक अभिलेख नस्लवादी चित्रणों से आश्चर्यजनक रूप से भरे पड़े हैं, लेकिन वे उनके साहस और वीरता को भी स्वीकार करते हैं। इन वर्षों में, हूल आदिवासी संप्रभुता और आत्मनिर्णय का प्रतीक बन गया है, जो कि 2016 में छोटांगापुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट, और पत्थलगड़ी में संशोधन के विरोध में आदिवासी राजनीतिक लामबंदी में प्रतिध्वनित हुआ।आज भी देश में आदिवासियों की परिस्तिथि में बहुत सुधार की आवश्कता है - पुनर्वास, संसाधनों का दोहन, सांस्कृतिक विकृति, विस्थापन, शिक्षा, बेरोजगारी, स्वास्थ्य,| आज के आदिवासियों को उनका इतिहास जानना होगा और अपने आप के लिए अपने लोगों के हक़ के लिए आवाज उठानी पड़ेगी| आपना प्रतिनिधित्व सरकार से मांगना पड़ेगा| 

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