यह प्रार्थना के स्थान पर झंडे लगाने की बात नहीं है, प्रार्थना के प्रतीक ये झंडे आपको लगभग सभी प्रार्थना स्थलों में प्राणियों और पूरे विश्व के लाभ के लिए मिलते हैं। आपने बौद्ध प्रार्थना स्थलों पर रंगीन कपड़े के सुंदर झंडे देखे होंगे, आध्यात्मिक अर्थ मैं अभी व्यक्त नहीं करूंगा। रंगीन झंडों की परंपरा प्राचीन काल में भी देखी जा सकती है। तिब्बत, चीन, फारस, भारत, श्रीलंका, भूटान और कई अन्य देशों में एक लंबी परंपरा रही है। बौद्ध ध्वज आधुनिक काल की रचना है और शायद ये रंगीन झंडे ही इनकी प्रेरणा होंगे| माना जाता है को इसे १८८० में सीलोन (वर्तमान में श्रीलंका) में बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान को चिह्नित करने के लिए श्री जे.आर. डी सिल्वा और कर्नल हेनरी स्टील ओल्कोट (अमेरिकी पत्रकार) द्वारा संयुक्त रूप से डिजाइन किया गया था।
बौद्ध ध्वज पहली बार 1885 में श्रीलंका में फहराया गया था। ध्वज बाद में बौद्धों की एकता का प्रतीक बन गया। तत्पश्चात, इसका उपयोग दुनिया भर में किया गया है और लगभग 60 देशों में सभी बौद्ध उत्सवों के दौरान इसका उपयोग किया गया है। हम लोगों ने बुद्धिस्ट धर्म को बाबा साहेब जी के मार्ग दर्शन में ही अपनाया है| उन्होंने देखा को बुद्धिस्ट धर्म भी बाकि धर्मो के तरह कई लोगों ने विकृत कर दिया है इसीलिए उन्होंने अपने लोगों के लिए "बुद्धा एंड हिज धम्मा" किताब लिखी| उन्होंने भी बुद्धिस्ट फ्लैग को माना है और उसके उद्देश्य बुद्धिस्ट एकता को माना है| उन्होंने भारतीय बौद्धों को अंतरराष्ट्रीय बौद्ध समुदाय का हिस्सा बनाने के लिए भी कई कदम उठाए। हमें अभी और काम करना है ताकि अंतरराष्ट्रीय बौद्ध समुदाय में भारत का योगदान बढ़े|
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