दलित प्रधानमत्री की मांग समय समय पर भारतीय राजनीति में उठती रही है और सही भी है भारतीय समाज को एक सूत्र में बढ़ने के लिए जिससे भारतीय राजतिनि में भी बराबर प्रतिनिधित्व बना रहे| बाबा साहेब जी को भारतरत्न कब मिला यह सब जानते है| और आज बीजेपी भी वही कर रही है| बहुजनो के कई ऐसे समाजसेवी है जिनको उनका हक़ नहीं मिला है ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, पेरियार और न जाने कितने लोग है| वैसे बीजेपी हर समय दूसरों की फसल कटाने में माहिर है| आप लोग देख सकते है की कैसे बीजेपी बाबा साहेब जी का नाम ले कर फायदा उठा रही है| बल्कि बीजेपी को सही में अगर बहुजनो की चिंता होती तो बहुजनों के महानायकों की विचार धरा को आगे बढ़ाते| कई लोग है भारतरत्न के हक़दार, उन्हें उनका हक़ दिलवाती| कांग्रेस की तरह भी बीजेपी भी बहुजनो का सिर्फ राजनैतिक उपयोग करती है और वोट बैंक तक सिमित रखती है|
आज जब दलितों पर और महिलाओं पर आये दिन अत्याचार बढ़ रहे है और सरकार इनको रोकने में नाकाम रही है, चाहे राज्य सरकारे हो या राष्ट्र किसी को भी दलितों और महिलाओं के मामले भी संवेदशील नहीं देखा गया है|
महिला सुरक्षा हो या दलित उत्पीडना आये दिन दिल दहला देने वाली खबरे सुनाई दे ही जाती है| मध्यप्रदेश, राजस्तान या मणिपुर कोई भी राज्य की घटनाये उठा लीजिये, देश को शर्मिंदा करने के लिए काफी है| आज के इस ज़माने में एक इंसान को एक इंसान इस तरह से बर्ताव कर सकता है सोच कर भी घिन आती है| इसीलिए आज इस देश के लिए एक महिला प्रधानमंत्री या एक दलित प्रधानमत्री होना जरुरत है| अगर मैं देश के राजनैतिक पटल को देखता हु तो मायावती जी ही ऐसी व्यक्ति नज़र आती है जो महिलाओं का और दलितों का नेतृत्व करती है|
1. प्रतिनिधित्व और सशक्तिकरण
भारत एक विविधतापूर्ण देश है जिसमें महिलाओं का व दलितों का सामाजिक असमानताओं का एक लंबा इतिहास है। महिलाये हो या दलित समुदाय, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर है और आज भी सामाजिक कुरीतियों से स्वतन्त्र नहीं हो पाया है, इसीलिए वे शासन के उच्चतम स्तर पर उचित प्रतिनिधित्व के हकदार है।
एक दलित प्रधान मंत्री होने से न केवल समावेशिता की भावना आएगी बल्कि लाखों दलित भी सशक्त होंगे जिन्होंने समान अधिकारों और अवसरों के लिए संघर्ष किया है। और यही महिलाओं के लिए भी लागु होता है|
2. रूढ़िवादिता को तोड़ना
दलित या महिला प्रधानमंत्री की नियुक्ति भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता और इनके खिलाफ गहरी जड़ें जमा चुके शोषण को चुनौती देगी। सर्वोच्च पद तक पहुंच सकने के बाद समाज में कुछ नीतिगत बदलाव देखे जा सकते है|
3. सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को संबोधित करना
महिलाये व दलित समुदाय ऐतिहासिक रूप से आर्थिक चुनौतियों का भी सामना करता आया है| एक महिला व दलित प्रधान मंत्री होने से इन असमानताओं को दूर करने के उद्देश्य से नीतियों और पहलों को सुविधाजनक बनाया जा सकता है। इन समुदायो का एक नेता संभवतः समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों के सामने आने वाले मुद्दों के बारे में एक अद्वितीय दृष्टिकोण और प्रत्यक्ष समझ लाएगा।
4 . परीपक्व लोकतंत्र की निशानी
एक महिला या दलित प्रधान मंत्री लोकतंत्र, समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को सुदृढ़ करेगा बल्कि ये यह भी दर्शायेगा की भारत की जनता कितनी परीपक्व है| समावेशी लोकतांत्रिक व्यवस्था का उदाहरण बन सकता है और अमेरिका के प्रेजिडेंट बराक ओबामा के बाद अन्य देशों के लिए एक उदाहरण स्थापित कर सकता है।
मायावती जी अपने आप को साबित पहले ही साबित कर चुकी है की वो राज्य को ही नहीं राष्ट्र को भी भलीभाती संभाल सकती है, उनकी योग्यता, अनुभव और देश को प्रभावी ढंग से नेतृत्व करने की क्षमता पर किसी को कोई दूसरा विचार नहीं आना चाहिए|
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