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Showing posts from May, 2023

माता रमाबाई - एक प्रेरणा

रमाबाई का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता भीकू धोत्रे और माता रुक्मिणी थे। 3 बहनें और एक भाई थे। रमा की मां को दिल का दौरा पड़ा और कुछ दिनों बाद उनके पिता भीकू की भी मृत्यु हो गई। उनके चाचा और मामा ने इन सभी बच्चों की देखभाल की। सूबेदार रामजी अंबेडकर अपने बेटे भीमराव अंबेडकर के लिए दुल्हन ढूंढ रहे थे।उन्होंने रमाबाई को देखा और भीमराव के लिए पसंद कर लिए । विवाह की तिथि सुनिश्चित की गई और अप्रैल 1906 में रमाबाई का विवाह भीमराव अम्बेडकर के साथ तय हुआ। विवाह के समय रमा केवल 9 वर्ष की थी और भीमराव 14 वर्ष के थे। अब रमा, रमाबाई भीमराव आंबेडकर बन चुकी थी|  माता रमाबाई हमेशा अपने और बच्चों की बीमारी, गरीबी के कारण खाने-पीने में कठिनाई, दवाई लाने में कठिनाई के लिए चिंतित रहती थीं, लेकिन फिर भी उन्होंने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि बाबासाहेब के काम में कोई बाधा न आए। उन्हें बाबासाहेब पर पूरा भरोसा था। वह जानता था कि एक गरीब और नीची जाति में जन्म लेना और उस तरह जीना कितना कष्टदायक होता है। इसलिए उन्होंने कभी बाबासाहेब की पढ़ाई नहीं रोकी और न ही उनके आंदोलन को रोकने की कोशिश की. ...

परिवारवाद एक राजनैतिक आरक्षण और उसका बहुजन राजनीती पर प्रभाव

लोकतांत्रिक व्यवस्था राजतंत्र से इस तरह भिन्न होती है कि जहाँ राजतंत्र में एक ही परिवार/वंश के लोगों का राजगद्दी पर बैठते है और पीढ़ी दर पीढ़ी राज करते है, वहीं लोकतंत्र में जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है। दुर्भाग्य की भारत में लोकतंत्र के बावजूद भी परिवारवाद/वंशवाद हावी है, अप्रत्यक्ष रूप से ही सही। माना की राजा नहीं चुन पते पर सांसद, विधायक और पार्षद में तो परिवारवाद देखा जा सकता है, जहां कुछ परिवारों का एकाधिपत्य चलता है। भारत में इस परिवारवादी या वंशवादी राजनीति का पुराण इतिहास रहा है। भारत की राजनीति में परिवारवाद से कोई भी राजनीतिक पार्टी अछूती नहीं रही है। राजनीतिक वंशवाद भारत की राजनीति को जकड़े हुए है। कर्णाटक विधानसभा चुनाव के बाद मैं ऐसे ही पिछले कुछ दिनों से बड़े राज्यों पर नज़र दौड़ा रहा था की बहुजन राजनीती किधर जा रही है| बिहार की बात करे तो चिराग पासवान जिनका बीजेपी के साथ पुराना नाता रहा है| वैसे आज कल तेजस्वी यादव लालू प्रसाद यादव जी के बेटे नितीश कुमार यादव जी के साथ है पर उन्हें कांग्रेस के साथ जाने में कोई परहेज दिखता नही है| राजस्तान के राजेन्द्र सिंह गुढ़ा मसल पा...

कर्णाटक विधान सभा चुनाव और मेरी निराशा

कर्नाटक विधान सभा चुनाव के विश्लेष तो आप ने काफी देखे होंगे और कई लोगों ने ख़ुशी भी जाहिर की होगी| पर मुझे इस चुनाव में भी निराशा हुयी| मैं कभी भी कांग्रेस से बीजेपी और बीजेपी से कांग्रेस सत्ता परिवर्तन नहीं चाहता था| मैंने एग्जिट पोल्स में जब जे.डी.यू को ३५ के आसपास सीटें दिखाई जा रही थी तब मैं खुश था| क्योकि जीत ना सही तीसरा फ्रंट किंग मेकर की जगह तो दिखाई दे रहा था| और तब मैं ट्वीट भी किया था|  कांग्रेस से बीजेपी और बीजेपी से कांग्रेस सत्ता परिवर्तन में बहुजनों की बात करने वाला कोई नहीं है और ना ही हम व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीद कर सकते है| हमारे महापुरुषों ने जो व्यवस्था परिवर्तन और प्रतिनिधित्व की उम्मीद की थी क्या वो हो पायेगी? मेरा ये पक्का विश्वास है की बहुजनों की तीसरी राजनैतिक शक्ति होनी चाहिए  जो काम से काम किंग मेकर की भूमिका में हर समय रहे| इन दोनों पार्टियों के ऊपर एक प्रेशर जरूर होना चाहिए ताकि ये पार्टिया न तो हमारे हक़ का पैसा इधर उधर कर सके और न ही हमारा कोई सांविधानिक हक़ मरी हो| बहुजनों को समझाना होगा की चाहे राष्ट्रपति मुरुम जी हो या कांग्रेस प्रेजिडेंट खड़गे ...

डी. के. खापर्डे एक संगठात्मक सोच

कई महाराष्ट्रियन लोगों ने कांशीराम जी के सामाजिक आंदोलन और राजनैतिक आंदोलन में साथ दिया और डी के खापर्डे जी उनमे से थे जो अग्रणीय थे, और यह  में  कहने  में  भी अतिश्योक्ति  व गलत  नहीं की कांशीराम जी डी के खापर्डे जी के कारण ही कांशीराम बनने की राह पर चले| डी के खापर्डे जी बामसेफ के गठन से लेकर अपने परिनिर्वाण तक खापर्डे जी बामसेफ को फुले-अंबेडकरी विचारधारा का संगठन बनाने मे मेहनत और ईमानदारी के साथ लगे रहे।     डी. के. खापर्डे  जी  का जन्म 13 मई 1939 को नागपुर (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनकी शिक्षा नागपुर में ही हुई थी।पढाई के बाद उन्होंने डिफेन्स में नौकरी ज्वाइन कर ली थी। नौकरी के वक़्त जब वे पुणे में थे, तभी कांशीराम जी और दीनाभाना वालमीकि जी उनके सम्पर्क में आये। महाराष्ट्र से होने के नाते खापर्डे जी को बाबा साहेब के बारे में व उनके संघर्ष के बारे में बखूबी पता था और उनसे वे प्रेरित थे| उन्होंने ने ही कांशीराम जी और दीनाभना जी को बाबा साहेब जी और उनके कार्यो, संघर्ष  व उनसे द्वारा चलाये आन्दोलनों  के बारे में बताया था| उ...

आज बहुजनों के एक मात्रा पार्टी बहुजन समाज पार्टी

 बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ही एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी है जो आज भी कांग्रेस और भाजपा के सामने अपने दम पर खड़ी है। बहुजनों को एक मजबूत पार्टी के महत्व को समझना होगा और बहुजन समाज पार्टी के पीछे खड़ा होना होगा। यही एक पार्टी है जो की बहुजनो को सही प्रतिनिधित्व दे सकती है|  पिछले कुछ दिनों से कहा जा रहा है की बसपा और उसकी नेता मायावती जी हाल के कुछ वर्षों में राजनीतिक प्रदर्शन में चुनौतियों का सामना कर रही हैं।एक कारण ये बताया जा रहा है की बहुजन और पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) मतदाताओं के अपने मूल आधार के बाहर नए समर्थन को आकर्षित करने में पार्टी की असमर्थ रही है| दूसरा कारण ये बताते है की बसपा ने अपने मूल समर्थकों का समर्थन भी खो दिया है। इसके अलावा, मायावती जी का 2019 में समाजवादी पार्टी से नाता टूट जाना, जिसे उनकी एक "बड़ी गलती" के रूप में प्रचारित किया गया और कहा गया की बसपा उत्तर प्रदेश में अपने सबसे निचले स्तर पर हैं और अब पार्टी का कोई अस्तित्व नहीं रहा। मेरे हिसाब से राजनीती में उतार और चढाव आते रहते है उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती जी आज भी एक प्रमुख राजनीतिक हस्ती रह...

जाती से जातिनिरपेक्ष कब?

 इन दिनों चर्चा मे आता रहता है जातिवाद। पहले जातिवाद को समझते है| जातिवाद क्या होता है? जाति को महत्व या स्वीकृति देना और उसके आधार पर भेदभाव करना, किसी जाति विशेष को दूसरी जातियों से श्रेष्ठ बताना या मानना| पर क्या जाति को महत्व देना भी जातिवाद है या किसी एक विशिस्ट जाती की उथ्थान की बात करना भी जातिवाद है? मेरी नज़र में नहीं, जातिवाद शब्द को भेदभाव से अलग कर के नहीं देख सकते और देखना भी ठीक नहीं होगा| हम जातिवाद और जातिवादी दोनों शब्दों को एक नकारात्मक रूप से ही देखते आये है| आज कल इतिहास की तरह शब्दों का मतलब भी अपने हिसाब से बदलने का रिवाज़ चल पड़ा है| पर हमे स्पस्ट रहना होगा और ध्यान में भी रखना होगा की कौन जातिवादी है और कौन नहीं| विशिष्ट जाती के उत्थान की बातें करना या कई जातियों की हक़ की बातें करना कतई जातिवाद नहीं है| जो वंचित और मानी हुयी निचली जातियों के हक़ और उत्थान की बात करते है वो कतई जातिवादी नहीं है|  एक और शब्द है धर्मनिरक्ष जिसका अर्थ होता है किसी खास धर्म का समर्थन न करना और सभी धर्मों को बराबर मानना| मेरे हिसाब से इसी तरह जातिनिरपेक्ष शब्द होना चाहिए| हमे सभी...