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Showing posts from January, 2023

बाबू मंगू राम - पंजाब के महान समाज सुधारक

 मंगू राम जी का जन्म 14 जनवरी, १८८६ में जिला होशियारपुर के एक गांव में हुआ था,  इनके पिता, हरमन दास एक पारंपरिक चमार जाति से थे और चमड़े के व्यावसाय में थे | बाद में उन्होंने ये पेशा छोड़ दिया था। मंगू राम की मां अत्रि की मृत्यु मंगू राम के तीन साल की उम्र में हो गई थी, इसलिए पिता सहायता के लिए अपने बेटों - मंगू और उनके दो भाई पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ता था। मंगू राम के पिता को उच्च जातियों के साक्षर सदस्यों पर भरोसा करने के लिए मजबूर होना पड़ता था ताकि वे बिक्री के आदेश और अन्य निर्देशों को पढ़ सकें जो की अंग्रेजो ने बनाये थे। एक घंटे के उनके पढ़ने के लिए उन्हें उन लोगों का एक दिन का कच्चा श्रम करना होगा। इसी वजह से मंगू राम के पिता अपने बेटे को प्रारंभिक शिक्षा दिलाने के लिए उत्सुक थे और मांगू राम भी पढ़ने में रूचि लेते थे| जब मंगू राम सात वर्ष के थे, तो उन्हें एक गाँव के साधु (संत) ने पढ़ाया और जल्द ही उन्होंने स्कूल पढ़ाई सुरु कर दी| निम्न जाती का होने के कारन उनके लिए पड़ना इतना आसान नहीं था| स्कूल में मंगू राम ही अनुसूचित जाति के छात्र थे| वह कक्षा में सबसे पीछे या य...

तिलका मांझी - वीरगति किस के लिए

तिलका मांझी एक पहाड़िया (पहाड़ी लोग) समुदाय में से आप कह सकते है की पहले आदिवासी नेता थे। हमारे देश के इतिहासकारो ने आदिवासियों व बहुजनों का इतिहास कभी ठीक ढंग से लिखा नहीं| शायद इसलिए की लिखना सिर्फ एक ऊंची जाती तक ही सिमित था और आदिवासियों और बहुजनों को उस समय लिखना आता नहीं था | जो कुछ भी इतिहास मिलता है उससे पता चलता है की 1784 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था तिलका मांझी ने। अपने लोगों को खाने व संसाधनों की कमी को देखते हुए उन्होंने आंदोलन छेद दिया था| कुछ समय बाद उन्होंने एक आदिवासियों को एक सशस्त्र समूह बनाया और उन्हें संगठित किया। 1771 से 1784 तक उन्होंने कभी आत्मसमर्पण नहीं किया। (https://thewire.in/history/santal-hul-revolution) मांझी ने अपने लोगों के लिए लड़ाई लड़ी, उनके शब्दों ने कई आदिवासी आंदोलनों को जन्म दिया। 1774 का हल्बा विद्रोह, 1818 का भील विद्रोह और 1831 का कोल विद्रोह। 1855-56 की संथाल हुल (क्रांति) संथाल आदिवासियों और बहुजनो के किसानों द्वारा शोषक उच्च जाति के जमींदारों (जमींदारों), महाजनों के खिलाफ लड़ी गई एक ऐसी ऐतिहासिक क्रांति थी। (साहूकार),...

८ जनवरी अंतरास्ट्रीय बुद्धिस्ट फ्लैग दिन

यह प्रार्थना के स्थान पर झंडे लगाने की बात नहीं है, प्रार्थना के प्रतीक ये झंडे आपको लगभग सभी प्रार्थना स्थलों में प्राणियों और पूरे विश्व के लाभ के लिए मिलते हैं। आपने बौद्ध प्रार्थना स्थलों पर रंगीन कपड़े के सुंदर झंडे देखे होंगे, आध्यात्मिक अर्थ मैं अभी व्यक्त नहीं करूंगा। रंगीन झंडों की परंपरा प्राचीन काल में भी देखी जा सकती है। तिब्बत, चीन, फारस, भारत, श्रीलंका, भूटान और कई अन्य देशों में एक लंबी परंपरा रही है। बौद्ध ध्वज आधुनिक काल की रचना है और शायद ये रंगीन झंडे ही इनकी प्रेरणा होंगे| माना जाता है को इसे १८८० में सीलोन (वर्तमान में श्रीलंका) में बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान को चिह्नित करने के लिए श्री जे.आर. डी सिल्वा और कर्नल हेनरी स्टील ओल्कोट (अमेरिकी पत्रकार) द्वारा संयुक्त रूप से डिजाइन किया गया था।  बौद्ध ध्वज पहली बार 1885 में श्रीलंका में फहराया गया था। ध्वज बाद में बौद्धों की एकता का प्रतीक बन गया। तत्पश्चात, इसका उपयोग दुनिया भर में किया गया है और लगभग 60 देशों में सभी बौद्ध उत्सवों के दौरान इसका उपयोग किया गया है। हम लोगों ने बुद्धिस्ट धर्म को बाबा साहेब जी के म...