जब दूसरी तरफ असीमित धन, प्रचुर संसाधन और पूरी व्यवस्था आपके खिलाफ हो, तो उनके विरुद्ध खड़े होना निश्चित रूप से आसान नहीं होता। यह बात महाराष्ट्र चुनाव के बाद और भी स्पष्ट हो गई है। कांग्रेस, एनसीपी, और शिवसेना जैसी बड़ी राजनीतिक पार्टियां भी मुँह के बल गिर गईं। जब सत्ता और व्यवस्था का झुकाव किसी एक पक्ष की ओर हो, तो प्रतिद्वंद्वी दलों के लिए परिस्थितियाँ और भी कठिन हो जाती हैं। यह चुनौती और बढ़ जाती है जब आप उन दबे-कुचले, वंचित, और बहिष्कृत लोगों के लिए लड़ाई लड़ रहे होते हैं, जिन्हें समाज में पहले ही पीछे धकेल दिया गया है। ऐसे में भारतीय समाज में दलित राजनीति की चुनौतियों और संघर्षों का मुद्दा सामने आता है। मायावती जी के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने इन वर्गों के लिए अपनी आवाज़ बुलंद की है। लेकिन अक्सर आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। अब वो लोग जो #BSP पर विचारधारा से भटकने का आरोप लगाते थे, उन्हें भी यह स्वीकार करना होगा कि संघर्ष का मैदान और उसकी कठिनाइयाँ क्या होती हैं। आलोचकों की वास्तविकता राजनीति में आलोचना करना आसान है, लेकिन जमीनी हकीकत को समझना और बदलाव के लिए प्रयास...
सम्राट अशोक, छत्रपति शाहूजी महाराज, ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, बाबा साहेब आंबेडकर जी, कांशीराम जी व अन्य महापुरुषों से प्रेरित बहुजन विषयों पर एक नज़र|