भारत में आरक्षण नीति एक महत्वपूर्ण और हमेशा से ही विवादास्पद रही है, जिसे समझना और उसका विश्लेषण करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। यह नीति भारत के संविधान के तहत उन लोगों को सामाजिक (नौकरी), शैक्षणिक और राजनीतिक रूप से सहायता प्रदान करने के लिए बनाई गई है जो ऐतिहासिक रूप से समाज के हाशिये पर रहे हैं। आरक्षण नीति के तहत, विभिन्न सामाजिक समूहों को सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और अन्य सुविधाओं में आरक्षण प्रदान किया जाता है। आरक्षण नीति को मैं हरसमय से ही प्रतिनिधित्य की नीति मानता आया हु| भारतीय इतिहास में जातियों के आधार पर कई सालों से कुछ जातियों पर भेदभाव (भेदभाव भी छोटा शब्द होगा उस भेदभाव को परिभाषित करने के लिए) होता रहा है| इस लेख में हम भारत की आरक्षण नीति के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे, ख़ासकर उप-वर्गीकरण। 1. आरक्षण नीति का इतिहास आरक्षण नीति की शुरुआत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय से हुई थी। ब्रिटिश शासन के दौरान, समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए कई प्रयास किए गए थे। 1909 में मिंटो-मोर्ले सुधारों के तहत, मुस्लिम समुदाय को राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण...
सम्राट अशोक, छत्रपति शाहूजी महाराज, ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, बाबा साहेब आंबेडकर जी, कांशीराम जी व अन्य महापुरुषों से प्रेरित बहुजन विषयों पर एक नज़र|